॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - चौबीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)
श्रीकपिलदेवजी का जन्म
मैत्रेय उवाच –
निर्वेदवादिनीमेवं मनोर्दुहितरं मुनिः ।
दयालुः शालिनीमाह शुक्लाभिव्याहृतं स्मरन् ॥ १ ॥
ऋषिरुवाच –
मा खिदो राजपुत्रीत्थं आत्मानं प्रत्यनिन्दिते ।
भगवान् तेऽक्षरो गर्भं अदूरात्सम्प्रपत्स्यते ॥ २ ॥
धृतव्रतासि भद्रं ते दमेन नियमेन च ।
तपोद्रविणदानैश्च श्रद्धया चेश्वरं भज ॥ ३ ॥
स त्वयाऽऽराधितः शुक्लो वितन्वन् मामकं यशः ।
छेत्ता ते हृदयग्रन्थिं औदर्यो ब्रह्मभावनः ॥ ४ ॥
श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—उत्तम गुणोंसे सुशोभित मनुकुमारी देवहूतिने जब ऐसी वैराग्ययुक्त बातें कहीं, तब कृपालु कर्दम मुनिको भगवान् विष्णुके कथनका स्मरण हो आया और उन्होंने उससे कहा ॥ १ ॥
कर्दमजी बोले—दोषरहित राजकुमारी ! तुम अपने विषयमें इस प्रकार खेद न करो; तुम्हारे गर्भमें अविनाशी भगवान् विष्णु शीघ्र ही पधारेंगे ॥ २ ॥ प्रिये ! तुमने अनेक प्रकारके व्रतोंका पालन किया है, अत: तुम्हारा कल्याण होगा। अब तुम संयम, नियम, तप और दानादि करती हुई श्रद्धापूर्वक भगवान् का भजन करो ॥ ३ ॥ इस प्रकार आराधना करनेपर श्रीहरि तुम्हारे गर्भसे अवतीर्ण होकर मेरा यश बढ़ावेंगे और ब्रह्मज्ञानका उपदेश करके तुम्हारे हृदयकी अहंकारमयी ग्रन्थिका छेदन करेंगे ॥ ४ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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