बुधवार, 28 मई 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - पचीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - पचीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

देवहूति का प्रश्न तथा भगवान्‌ कपिलद्वारा 
भक्तियोग की महिमा का वर्णन

ते एते साधवः साध्वि सर्वसङ्गविवर्जिताः ।
सङ्गस्तेष्वथ ते प्रार्थ्यः सङ्गदोषहरा हि ते ॥ २४ ॥
सतां प्रसङ्गान् मम वीर्यसंविदो
     भवन्ति हृत्कर्णरसायनाः कथाः ।
तज्जोषणादाश्वपवर्गवर्त्मनि
     श्रद्धा रतिर्भक्तिरनुक्रमिष्यति ॥ २५ ॥
भक्त्या पुमान्जातविराग ऐन्द्रियाद्
     दृष्टश्रुतान् मद्रचनानुचिन्तया ।
चित्तस्य यत्तो ग्रहणे योगयुक्तो
     यतिष्यते ऋजुभिर्योगमार्गैः ॥ २६ ॥
असेवयायं प्रकृतेर्गुणानां
     ज्ञानेन वैराग्यविजृम्भितेन ।
योगेन मय्यर्पितया च भक्त्या
     मां प्रत्यगात्मानमिहावरुन्धे ॥ २७ ॥

(भगवान्‌ कपिल अपनी माता देवहूति से कहरहे हैं) साध्वि ! ऐसे-ऐसे सर्वसङ्गपरित्यागी महापुरुष ही साधु होते हैं, तुम्हें उन्हीं के सङ्ग की इच्छा करनी चाहिये; क्योंकि वे आसक्ति से उत्पन्न सभी दोषों को हर लेनेवाले हैं ॥ २४ ॥ सत्पुरुषों के समागम से मेरे पराक्रमों का यथार्थ ज्ञान कराने वाली तथा हृदय और कानों को प्रिय लगनेवाली कथाएँ होती हैं। उनका सेवन करनेसे शीघ्र ही मोक्षमार्ग में श्रद्धा, प्रेम और भक्तिका क्रमश: विकास होगा ॥ २५ ॥ फिर मेरी सृष्टि आदि लीलाओं का चिन्तन करनेसे प्राप्त हुई भक्ति के द्वारा लौकिक एवं पारलौकिक सुखों में वैराग्य हो जाने पर मनुष्य सावधानतापूर्वक योग के भक्तिप्रधान सरल उपायों से समाहित होकर मनोनिग्रह के लिये यत्न करेगा ॥ २६ ॥ इस प्रकार प्रकृति के गुणों से उत्पन्न हुए शब्दादि विषयों का त्याग करने से, वैराग्ययुक्त ज्ञान से, योग से और मेरे प्रति की हुई सुदृढ़ भक्ति से मनुष्य मुझ अपने अन्तरात्मा को इस देह में ही प्राप्त कर लेता है ॥ २७ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🥀🌹जय श्रीकृष्ण🙏
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
    हरि:शरणम् !! हरि:शरणम् !!
    हरि:शरणम् !! 🙏🙏

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