॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - तेईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)
कर्दम और देवहूतिका विहार
चक्षुष्मत् पद्मरागाग्र्यैः वज्रभित्तिषु निर्मितैः ।
जुष्टं विचित्रवैतानैः महार्हैः हेमतोरणैः ॥ १९ ॥
हंसपारावतव्रातैः तत्र तत्र निकूजितम् ।
कृत्रिमान् मन्यमानैः स्वान् अधिरुह्याधिरुह्य च ॥ २० ॥
विहारस्थानविश्राम संवेशप्राङ्गणाजिरैः ।
यथोपजोषं रचितैः व्प्स्मापनं इवात्मनः ॥ २१ ॥
ईदृग्गृहं तत्पश्यन्तीं नातिप्रीतेन चेतसा ।
सर्वभूताशयाभिज्ञः प्रावोचत् कर्दमः स्वयम् ॥ २२ ॥
निमज्ज्यास्मिन् ह्रदे भीरु विमानं इदमारुह ।
इदं शुक्लकृतं तीर्थं आशिषां यापकं नृणाम् ॥ २३ ॥
उस (विमान)की हीरे की दीवारों में बढिय़ा लाल जड़े हुए थे, जो ऐसे जान पड़ते थे मानो विमान की आँखें हों, तथा उसे रंग-बिरंगे चँदोवे और बहुमूल्य सुनहरी बन्दनवारों से सजाया गया था ॥ १९ ॥ उस विमान में जहाँ-तहाँ कृत्रिम हंस और कबूतर आदि पक्षी बनाये गये थे, जो बिलकुल सजीव-से मालूम पड़ते थे। उन्हें अपना सजातीय समझकर बहुत-से हंस और कबूतर उनके पास बैठ-बैठकर अपनी बोली बोलते थे ॥ २० ॥ उसमें सुविधानुसार क्रीडास्थली, शयनगृह, बैठक, आँगन और चौक आदि बनाये गये थे—जिनके कारण वह विमान स्वयं कर्दमजी को भी विस्मित-सा कर रहा था ॥ २१ ॥
ऐसे सुन्दर घर को भी जब देवहूति ने बहुत प्रसन्न चित्त से नहीं देखा, तो सबके आन्तरिक भाव को परख लेनेवाले कर्दमजी ने स्वयं ही कहा— ॥ २२ ॥ ‘भीरु ! तुम इस बिन्दुसरोवर में स्नान कर के विमानपर चढ़ जाओ; यह विष्णुभगवान् का रचा हुआ तीर्थ मनुष्योंको सभी कामनाओंकी प्राप्ति करानेवाला है’ ॥ २३ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
🌺🌸🌺 जय श्री हरि: !! 🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!