॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - छब्बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)
महदादि भिन्न-भिन्न तत्त्वोंकी उत्पत्ति का वर्णन
वायोश्च स्पर्शतन्मात्राद् रूपं दैवेरितादभूत् ।
समुत्थितं ततस्तेजः चक्षू रूपोपलम्भनम् ॥ ३८ ॥
द्रव्याकृतित्वं गुणता व्यक्तिसंस्थात्वमेव च ।
तेजस्त्वं तेजसः साध्वि रूपमात्रस्य वृत्तयः ॥ ३९ ॥
द्योतनं पचनं पानं अदनं हिममर्दनम् ।
तेजसो वृत्तयस्त्वेताः शोषणं क्षुत्तृडेव च ॥ ४० ॥
तदनन्तर दैवकी प्रेरणा से स्पर्शतन्मात्रविशिष्ट वायु के विकृत होने पर उस से रूप तन्मात्र हुआ तथा उससे तेज और रूप को उपलब्ध करानेवाली नेत्रेन्द्रिय का प्रादुर्भाव हुआ ॥ ३८ ॥ साध्वि ! वस्तु के आकार का बोध कराना, गौण होना—द्रव्यके अङ्गरूप से प्रतीत होना, द्रव्य का जैसा आकार-प्रकार और परिमाण आदि हो, उसी रूप में उपलक्षित होना तथा तेज का स्वरूपभूत होना—ये सब रूपतन्मात्र की वृत्तियाँ हैं ॥३९॥ चमकना, पकाना, शीत को दूर करना, सुखाना, भूख-प्यास पैदा करना और उनकी निवृत्तिके लिये भोजन एवं जलपान कराना—ये तेजकी वृत्तियाँ हैं ॥ ४० ॥
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🌷🥀🧡ॐश्रीपरमात्मने नमः
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
श्रीराधेकृष्णाभ्याम् नमः 🙏
🙏🚩🦠हे मैरे कमल नयन 🌿🌼🦠🚩🙏🧎♂️
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