सोमवार, 2 जून 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - पचीसवाँ अध्याय..(पोस्ट११)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - पचीसवाँ अध्याय..(पोस्ट११)

देवहूति का प्रश्न तथा भगवान्‌ कपिलद्वारा 
भक्तियोग की महिमा का वर्णन

इमं लोकं तथैव अमुं आत्मानं उभयायिनम् ।
आत्मानं अनु ये चेह ये रायः पशवो गृहाः ॥ ३९ ॥
विसृज्य सर्वान् अन्यांश्च मामेवं विश्वतोमुखम् ।
भजन्ति अनन्यया भक्त्या तान्मृत्योरतिपारये ॥ ४० ॥
नान्यत्र मद्‍भगवतः प्रधानपुरुषेश्वरात् ।
आत्मनः सर्वभूतानां भयं तीव्रं निवर्तते ॥ ४१ ॥

(श्रीभगवान्‌ कह रहे हैं) माताजी ! जो लोग इहलोक, परलोक और इन दोनों लोकोंमें साथ जानेवाले वासनामय लिङ्गदेहको तथा शरीरसे सम्बन्ध रखनेवाले जो धन, पशु एवं गृह आदि पदार्थ हैं, उन सबको और अन्यान्य संग्रहोंको भी छोडक़र अनन्य भक्तिसे सब प्रकार मेरा ही भजन करते हैं—उन्हें मैं मृत्युरूप संसारसागरसे पार कर देता हूँ ॥ ३९-४० ॥ मैं साक्षात् भगवान्‌ हूँ, प्रकृति और पुरुषका भी प्रभु हूँ तथा समस्त प्राणियोंका आत्मा हूँ; मेरे सिवा और किसीका आश्रय लेनेसे मृत्युरूप महाभयसे छुटकारा नहीं मिल सकता ॥ ४१ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🥀💖🕉️🥀जय श्रीकृष्ण 🙏
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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