बुधवार, 12 नवंबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - पच्चीसवां अध्याय..(पोस्ट०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध – पचीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

पुरञ्जनोपाख्यानका प्रारम्भ

यदृच्छयागतां तत्र ददर्श प्रमदोत्तमाम् ।
भृत्यैर्दशभिरायान्तीं एकैकशतनायकैः ॥ २० ॥
अञ्चशीर्षाहिना गुप्तां प्रतीहारेण सर्वतः ।
अन्वेषमाणां ऋषभं अप्रौढां कामरूपिणीम् ॥ २१ ॥
सुनासां सुदतीं बालां सुकपोलां वराननाम् ।
समविन्यस्तकर्णाभ्यां बिभ्रतीं कुण्डलश्रियम् ॥ २२ ॥
पिशङ्‌गनीवीं सुश्रोणीं श्यामां कनकमेखलाम् ।
पद्भ्यां  क्वणद्भ्यां  चलन्तीं नूपुरैर्देवतामिव ॥ २३ ॥
स्तनौ व्यञ्जितकैशोरौ समवृत्तौ निरन्तरौ ।
वस्त्रान्तेन निगूहन्तीं व्रीडया गजगामिनीम् ॥ २४ ॥
तामाह ललितं वीरः सव्रीडस्मितशोभनाम् ।
स्निग्धेनापाङ्‌गपुङ्‌खेन स्पृष्टः प्रेमोद्भ्र मद्भ्रु वा ॥ २५ ॥

राजा पुरञ्जनने उस अद्भुत वनमें घूमते-घूमते एक सुन्दरीको आते देखा, जो अकस्मात् उधर चली आयी थी। उसके साथ दस सेवक थे, जिनमेंसे प्रत्येक सौ-सौ नायिकाओंका पति था ॥ २० ॥ एक पाँच फनवाला साँप उसका द्वारपाल था, वही उसकी सब ओरसे रक्षा करता था। वह सुन्दरी भोली-भाली किशोरी थी और विवाहके लिये श्रेष्ठ पुरुषकी खोजमें थी ॥ २१ ॥ उसकी नासिका, दन्तपङ्क्ति, कपोल और मुख बहुत सुन्दर थे। उसके समान कानोंमें कुण्डल झिलमिला रहे थे ॥ २२ ॥ उसका रंग साँवला था। कटिप्रदेश सुन्दर था। वह पीले रँगकी साड़ी और सोनेकी करधनी पहने हुए थी तथा चलते समय चरणोंसे नूपुरोंकी झनकार करती जाती थी। अधिक क्या वह साक्षात् कोई देवी-सी जान पड़ती थी ॥ २३ ॥ वह गजगामिनी बाला किशोरावस्थाकी सूचना देनेवाले अपने गोल-गोल समान और परस्पर सटे हुए स्तनोंको लज्जावश बार-बार अञ्चलसे ढकती जाती थी ॥ २४ ॥ उसकी प्रेमसे मटकती भौंह और प्रेमपूर्ण तिरछी चितवनके बाणसे घायल होकर वीर पुरञ्जनने लज्जायुक्त मुसकानसे और भी सुन्दर लगनेवाली उस देवीसे मधुरवाणीमें कहा ॥ २५ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


2 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः 💐💐💐💐🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. 🕉️🌿🌺जय हो गिरिराज धरण गोवर्धन गिरधारी महाराज 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

    जवाब देंहटाएं

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - छब्बीसवां अध्याय..(पोस्ट०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  चतुर्थ स्कन्ध – छब्बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३) राजा पुरञ्जनका शिकार खेलने वनमें जाना और रानीका ...