॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)
भगवान् वामनजी का विराट् रूप होकर
दो ही पग से पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लेना
सन्ध्यां विभोर्वाससि गुह्य ऐक्षत्
प्रजापतीन्जघने
आत्ममुख्यान् ।
नाभ्यां नभः कुक्षिषु सप्तसिन्धून्
उरुक्रमस्योरसि
चर्क्षमालाम् ॥ २४ ॥
हृद्यंग धर्मं स्तनयोर्मुरारेः
ऋतं च सत्यं च
मनस्यथेन्दुम् ।
श्रियं च वक्षस्यरविन्दहस्तां
कण्ठे च सामानि
समस्तरेफान् ॥ २५ ॥
इन्द्रप्रधानानमरान्भुजेषु
तत्कर्णयोः
ककुभो द्यौश्च मूर्ध्नि ।
केशेषु मेघान्छ्वसनं नासिकायां
अक्ष्णोश्च
सूर्यं वदने च वह्निम् ॥ २६ ॥
वाण्यां च छन्दांसि रसे जलेशं
भ्रुवोर्निषेधं
च विधिं च पक्ष्मसु ।
अहश्च रात्रिं च परस्य पुंसो
मन्युं
ललाटेऽधर एव लोभम् ॥ २७ ॥
स्पर्शे च कामं नृप रेतसाम्भः
पृष्ठे
त्वधर्मं क्रमणेषु यज्ञम् ।
छायासु मृत्युं हसिते च मायां
तनूरुहेष्वोषधिजातयश्च ॥ २८ ॥
नदीश्च नाडीषु शिला नखेषु
बुद्धावजं
देवगणान् ऋषींश्च ।
प्राणेषु गात्रे स्थिरजंगमानि
सर्वाणि भूतानि
ददर्श वीरः ॥ २९ ॥
इसी प्रकार भगवान् के वस्त्रों में सन्ध्या, गुह्यस्थानों में प्रजापतिगण, जघनस्थल में अपने-सहित समस्त असुरगण, नाभिमें आकाश,
कोखमें सातों समुद्र और वक्ष:स्थलमें नक्षत्रसमूह देखे ॥ २४
॥ उन लोगोंको भगवान्के हृदयमें धर्म, स्तनोंमें ऋत (मधुर) और सत्य वचन, मनमें चन्द्रमा,
वक्ष:स्थलपर हाथोंमें कमल लिये लक्ष्मीजी, कण्ठमें सामवेद और संपूर्ण शब्दसमूह उन्हें दीखे ॥ २५ ॥
बाहुओंमें इन्द्रादि समस्त देवगण, कानोंमें
दिशाएँ,
मस्तकमें स्वर्ग, केशोंमें मेघमाला,
नासिकामें वायु, नेत्रोंमें सूर्य और मुखमें अग्रि दिखायी पड़े ॥ २६ ॥ वाणीमें वेद, रसनामें वरुण, भौंहोंमें विधि और निषेध, पलकोंमें दिन
और रात। विश्वरूपके ललाटमें क्रोध और नीचेके ओठमें लोभके दर्शन हुए ॥ २७ ॥
परीक्षित् ! उनके स्पर्शमें काम, वीर्यमें जल, पीठमें अधर्म, पद-विन्यासमें यज्ञ,
छायामें मृत्यु, हँसीमें माया और शरीरके रोमोंमें सब प्रकारकी ओषधियाँ थीं ॥ २८ ॥ उनकी
नाडिय़ोंमें नदियाँ,
नखोंमें शिलाएँ और बुद्धिमें ब्रह्मा, देवता एवं ऋषिगण दीख पड़े। इस प्रकार वीरवर बलिने भगवान्की
इन्द्रियों और शरीरमें सभी चराचर प्राणियोंका दर्शन किया ॥ २९ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से