॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)
पूरु के वंश,राजा दुष्यन्त और भरत के चरित्र का वर्णन
तस्यासन् नृप वैदर्भ्यः पत्न्यस्तिस्रः सुसम्मताः ।
जघ्नुस्त्यागभयात् पुत्रान् नानुरूपा इतीरिते ॥ ३४ ॥
तस्यैवं वितथे वंशे तदर्थं यजतः सुतम् ।
मरुत्स्तोमेन मरुतो भरद्वाजमुपाददुः ॥ ३५ ॥
अन्तर्वत्न्यां भ्रातृपत्न्यां मैथुनाय बृहस्पतिः ।
प्रवृत्तो वारितो गर्भं शप्त्वा वीर्यमुपासृजत् ॥ ३६ ॥
तं त्यक्तुकामां ममतां भर्तुत्यागविशंकिताम् ।
नामनिर्वाचनं तस्य श्लोकमेनं सुरा जगुः ॥ ३७ ॥
मूढे भर द्वाजं इमं भर द्वाजं बृहस्पते ।
यातौ यदुक्त्वा पितरौ भरद्वाजस्ततस्त्वयम् ॥ ३८ ॥
चोद्यमाना सुरैरेवं मत्वा वितथमात्मजम् ।
व्यसृजन् मरुतोऽबिभ्रन् दत्तोऽयं वितथेऽन्वये ॥ ३९ ॥
परीक्षित् ! विदर्भराज की तीन कन्याएँ सम्राट् भरतकी पत्नियाँ
थीं। वे उनका बड़ा आदर भी करते थे। परंतु जब भरतने उनसे कह दिया कि तुम्हारे पुत्र
मेरे अनुरूप नहीं हैं, तब वे डर गयीं कि कहीं सम्राट् हमें त्याग न दें।
इसलिये उन्होंने अपने बच्चोंको मार डाला ॥ ३४ ॥ इस प्रकार सम्राट् भरतका वंश वितथ
अर्थात् विच्छिन्न होने लगा। तब उन्होंने सन्तानके लिये ‘मरुत्स्तोम’
नामका यज्ञ किया। इससे मरुद्गणोंने प्रसन्न होकर भरतको भरद्वाज
नामका पुत्र दिया ॥ ३५ ॥ भरद्वाजकी उत्पत्तिका प्रसङ्ग यह है कि एक बार
बृहस्पतिजीने अपने भाई उतथ्यकी गर्भवती पत्नीसे मैथुन करना चाहा। उस समय गर्भमें
जो बालक (दीर्घतमा) था, उसने मना किया। किन्तु बृहस्पतिजीने
उसकी बातपर ध्यान न दिया और उसे ‘तू अंधा हो जा’ यह शाप देकर बलपूर्वक गर्भाधान कर दिया ॥ ३६ ॥ उतथ्यकी पत्नी ममता इस
बातसे डर गयी कि कहीं मेरे पति मेरा त्याग न कर दें। इसलिये उसने बृहस्पतिजीके
द्वारा होनेवाले लडक़ेको त्याग देना चाहा। उस समय देवताओंने गर्भस्थ शिशुके नामका
निर्वचन करते हुए यह कहा ॥ ३७ ॥ बृहस्पतिजी कहते हैं कि ‘अरी
मूढे ! यह मेरा औरस और मेरे भाईका क्षेत्रज—इस प्रकार
दोनोंका पुत्र (द्वाज) है; इसलिये तू डर मत, इसका भरण-पोषण कर (भर)।’ इसपर ममताने कहा—‘बृहस्पते ! यह मेरे पतिका नहीं, हम दोनोंका ही पुत्र
है; इसलिये तुम्हीं इसका भरण-पोषण करो।’ इस प्रकार आपसमें विवाद करते हुए माता-पिता दोनों ही इसको छोडक़र चले गये।
इसलिये इस लडक़ेका नाम ‘भरद्वाज’ हुआ ॥
३८ ॥ देवताओंके द्वारा नामका ऐसा निर्वचन होनेपर भी ममताने यही समझा कि मेरा यह
पुत्र वितथ अर्थात् अन्यायसे पैदा हुआ है। अत: उसने उस बच्चेको छोड़ दिया। अब
मरुद्गणों ने उसका पालन किया और जब राजा भरतका वंश नष्ट होने लगा, तब उसे लाकर उनको दे दिया। यही वितथ (भरद्वाज) भरतका दत्तक पुत्र हुआ ॥ ३९
॥
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां
संहितायां नवमस्कन्धे विंशोऽध्यायः ॥ २० ॥
हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से