रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातम् |
भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पंकजश्रीः ||
इत्थं विचारयति कोषगते द्विरेफे |
हा हन्त हन्त नलिनीं गज उज्जहार ||
रात्रि बीतेगी सुन्दर प्रभात होगा ! सूर्य निकलेगा, कमलों का समूह खिलेगा ! --इस प्रकार कमल की डोडी में बैठे हुए भौंरा सोच ही रहा था कि उसके ऐसा सोचते-सोचते.... हाय ! बड़ा दु:ख है कि हाथी, उसी कमलिनी को उखाड़ कर ले गया !!
उसे क्या पता था कि उसके भाग्य में क्या लिखा है ?
मनुष्य भी इसी प्रकार दु:ख के समय में सुख के लिए कितनी ही मधुर कल्पनाएँ करता रहता है , किन्तु उसका दु:ख समाप्त हो नहीं पाता कि काल उसे ग्रस लेता है --उसके ऊपर कुछ भी निर्भर नही होता | होता वही है जो ईश्वर चाहता है !!