कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जंघे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी॥३१॥
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादांगुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥३२॥
नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा॥३३॥
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी॥३४॥
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु॥३५॥
शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥३६॥
भगवती कटिभाग में और विंध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करे । सम्पूर्ण कामनाओं को देनेवाली महाबला देवी दोनों पिण्डलियों की रक्षा करे ॥३१॥ नारसिंही दोनों घुट्ठियों की और तैजसी देवी दोनों चरणों के पृष्ठ भाग की रक्षा करे । श्री देवी पैरों की अंगुलियों में और तलवासिनी पैरों के तलुओं में रहकर रक्षा करे ॥३२॥ अपनी दाढ़ों के कारण भयंकर दिखायी देनेवाली दंष्ट्राकराली देवी नखों की और ऊर्ध्वकेशिनी देवी केशों की रक्षा करे । रोमवालियों के छिद्रों में कौबेरी और त्वचा की वागीश्वरीदेवी रक्षा करे ॥३३॥ पार्वती देवी रक्त , मज्जा , वसा , मांस , हड्डी और मेदा की रक्षा करे । आँतों की कालरात्रि और पित्त की मुकुटेश्वरी रक्षा करे ॥३४॥ मूलाधार आदि कमल - कोशों में पद्मावती देवी और कफ में चूड़ामणिदेवी स्थित होकर रक्षा करे । नख के तेज की ज्वालामुखी रक्षा करे । जिसका किसी भी अस्त्र से भेदन नहीं हो सकता , वह अभेद्यादेवी शरीर की समस्त संधियों में रहकर रक्षा करे ॥३५॥ ब्रह्माणि ! आप मेरे वीर्य की रक्षा करे । छत्रेश्वरी छाया की तथा धर्मधारिणी - देवी मेरे अहंकार, मन और बुद्धिकी रक्षा करे ॥३६॥
शेष आगामी पोस्ट में --
..........गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक (कोड 1281) से