गुरुवार, 6 सितंबर 2018

||श्री परमात्मने नम :|| विवेक चूडामणि (पोस्ट.०२)



||श्री परमात्मने नम :||

विवेक चूडामणि (पोस्ट.०२)


लब्ध्वा कथञ्चिन्नरजन्म दुर्लभं
तत्रापि पुंस्त्वं श्रुतिपारदर्शनम् |
य: स्वात्ममुक्तौ न यतेत मूढ़धी:
स ह्यात्महा स्वं विनिहन्त्यसद्ग्रहात् || ||

(किसी प्रकार इस दुर्लभ मनुष्य जन्म को पाकर और उसमें भी, जिसमें श्रुति के सिद्धात का ज्ञान होता है ऐसा पुरुषत्व पाकर जो मूढ़बुद्धि अपने आत्मा की मुक्ति के लिए प्रयत्न नहीं करता, वह निश्चय ही आत्मघाती है; वह असत् में आस्था रखने के कारण अपने को नष्ट करता है)

इत: को न्वस्ति मूढात्मा यस्तु स्वार्थे प्रमाद्यति |
दुर्लभं मानुषं देहं प्राप्य तत्रापि पौरुषम् ||||

(दुर्लभ मनुष्य-देह और उसमें भी पुरुषत्व को पाकर जो स्वार्थ-साधन में प्रमाद करता है, उससे अधिक मूढ़ और कौन होगा ?)

नारायण ! नारायण !!

शेष आगामी पोस्ट में

---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे



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