॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
समुद्रमन्थन का आरम्भ और भगवान् शङ्कर का विषपान
मथ्यमानेऽर्णवे सोऽद्रि रनाधारो ह्यपोऽविशत्
ध्रियमाणोऽपि बलिभिर्गौरवात्पाण्डुनन्दन ॥ ६ ॥
ते सुनिर्विण्णमनसः परिम्लानमुखश्रियः
आसन्स्वपौरुषे नष्टे दैवेनातिबलीयसा ॥ ७ ॥
विलोक्य विघ्नेशविधिं तदेश्वरो
दुरन्तवीर्योऽवितथाभिसन्धिः
कृत्वा वपुः कच्छपमद्भुतं महत्
प्रविश्य तोयं गिरिमुज्जहार ॥ ८ ॥
परीक्षित् ! जब समुद्रमन्थन होने लगा, तब बड़े-बड़े बलवान् देवता और असुरोंके पकड़े रहनेपर भी
अपने भारकी अधिकता और नीचे कोई आधार न होनेके कारण मन्दराचल समुद्रमें डूबने लगा ॥
६ ॥ इस प्रकार अत्यन्त बलवान् दैवके द्वारा अपना सब किया-कराया मिट्टीमें मिलते
देख उनका मन टूट गया। सबके मुँहपर उदासी छा गयी ॥ ७ ॥ उस समय भगवान् ने देखा कि
यह तो विघ्रराजकी करतूत है। इसलिये उन्होंने उसके निवारणका उपाय सोचकर अत्यन्त
विशाल एवं विचित्र कच्छपका रूप धारण किया और समुद्रके जलमें प्रवेश करके
मन्दराचलको ऊपर उठा दिया। भगवान्की शक्ति अनन्त है। वे सत्यसङ्कल्प हैं। उनके
लिये यह कौन-सी बड़ी बात थी ॥ ८ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
जय श्री हरि जय हो प्रभु जय हो
जवाब देंहटाएं🌹💖🌼🥀जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
ॐ अच्युताय नमः
ॐ अनंताय नमः
ॐ गोविंदाय नमः