॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)
समुद्रमन्थन का आरम्भ और भगवान् शङ्कर का विषपान
तमुत्थितं वीक्ष्य कुलाचलं पुनः
समुद्यता निर्मथितुं सुरासुराः
दधार पृष्ठेन स लक्षयोजन-
प्रस्तारिणा द्वीप इवापरो महान् ॥ ९ ॥
सुरासुरेन्द्रैर्भुजवीर्यवेपितं
परिभ्रमन्तं गिरिमङ्ग पृष्ठतः
बिभ्रत्तदावर्तनमादिकच्छपो
मेनेऽङ्गकण्डूयनमप्रमेयः ॥ १० ॥
तथासुरानाविशदासुरेण
रूपेण तेषां बलवीर्यमीरयन्
उद्दीपयन्देवगणांश्च विष्णु-
र्दैवेन नागेन्द्रमबोधरूपः ॥ ११ ॥
देवता और असुरोंने देखा कि मन्दराचल तो ऊपर उठ आया है, तब वे फिरसे समुद्र- मन्थनके लिये उठ खड़े हुए। उस समय
भगवान् ने जम्बूद्वीपके समान एक लाख योजन फैली हुई अपनी पीठपर मन्दराचल को धारण
कर रखा था ॥ ९ ॥ परीक्षित् ! जब बड़े-बड़े देवता और असुरों ने अपने बाहुबल से
मन्दराचल को प्रेरित किया,
तब वह भगवान् की पीठपर घूमने लगा। अनन्त शक्तिशाली
आदिकच्छप भगवान् को उस पर्वत का चक्कर लगाना ऐसा जान पड़ता था, मानो कोई उनकी पीठ खुजला रहा हो ॥ १० ॥ साथ ही समुद्र-मन्थन
सम्पन्न करने के लिये भगवान् ने असुरों में उनकी शक्ति और बलको बढ़ाते हुए
असुररूप से प्रवेश किया। वैसे ही उन्होंने देवताओंको उत्साहित करते हुए उनमें
देवरूपसे प्रवेश किया और वासुकिनागमें निद्राके रूपसे ॥ ११ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंजय श्री हरि जय हो प्रभु जय हो
जवाब देंहटाएंOm namo narayanay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं🌷🍂💐जय श्री हरि: !!🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं🌸💐🌷 जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
ॐ नमो नारायण