॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – चौबीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
भगवान् के मत्स्यावतार की कथा
श्रीशुक उवाच -
गोविप्रसुरसाधूनां छन्दसामपि चेश्वरः ।
रक्षां इच्छन् तनु धत्ते धर्मस्यार्थस्य चैव हि ॥ ५ ॥
उच्चावचेषु भूतेषु चरन् वायुरिवेश्वरः ।
नोच्चावचत्वं भजते निर्गुणत्वाद्धियो गुणैः ॥ ६ ॥
आसीद् अतीतकल्पान्ते ब्राह्मो नैमित्तिको लयः ।
समुद्रोपप्लुतास्तत्र लोका भूरादयो नृप ॥ ७ ॥
कालेनागतनिद्रस्य धातुः शिशयिषोर्बली ।
मुखतो निःसृतान् वेदान् हयग्रीवोऽन्तिकेऽहरत् ॥ ८ ॥
ज्ञात्वा तद् दानवेन्द्रस्य हयग्रीवस्य चेष्टितम् ।
दधार शफरीरूपं भगवान् हरिरीश्वरः ॥ ९ ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित् ! यों तो भगवान् सब के एकमात्र प्रभु हैं; फिर भी वे गौ, ब्राह्मण,
देवता, साधु, वेद,
धर्म और अर्थ की रक्षाके लिये शरीर धारण किया करते हैं ॥ ५
॥ वे सर्वशक्तिमान् प्रभु वायुकी तरह नीचे-ऊँचे, छोटे-बड़े सभी प्राणियोंमें अन्तर्यामीरूपसे लीला करते रहते हैं। परंतु उन-उन
प्राणियोंके बुद्धिगत गुणोंसे वे छोटे-बड़े या ऊँचे-नीचे नहीं हो जाते। क्योंकि वे
वास्तवमें समस्त प्राकृत गुणोंसे रहित—निर्गुण हैं ॥ ६ ॥ परीक्षित् ! पिछले कल्पके अन्तमें ब्रह्माजीके सो जानेके
कारण ब्राह्म नामक नैमित्तिक प्रलय हुआ था। उस समय भूर्लोक आदि सारे लोक समुद्रमें
डूब गये थे ॥ ७ ॥ प्रलयकाल आ जाने के कारण ब्रह्माजीको नींद आ रही थी, वे सोना चाहते थे। उसी समय वेद उनके मुखसे निकल पड़े और
उनके पास ही रहनेवाले हयग्रीव नामक बली दैत्यने उन्हें योगबलसे चुरा लिया ॥ ८ ॥
सर्वशक्तिमान् भगवान् श्रीहरिने दानवराज हयग्रीव की यह चेष्टा जान ली । इसलिये
उन्होंने मत्स्यावतार ग्रहण किया ॥ ९ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएं🍃🌸ॐ राम रामाय नमः🌸🍃
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएं🌺🌼🥀जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
Jay shreKrishnae
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