सोमवार, 18 नवंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – चौबीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – चौबीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)

भगवान्‌ के मत्स्यावतार की कथा

श्रीभगवानुवाच -
सप्तमे ह्यद्यतनाद् ऊर्ध्वं अहन्येतदरिन्दम ।
निमंक्ष्यत्यप्ययाम्भोधौ त्रैलोक्यं भूर्भुवादिकम् ॥ ३२ ॥
त्रिलोक्यां लीयमानायां संवर्ताम्भसि वै तदा ।
उपस्थास्यति नौः काचिद् विशाला त्वां मयेरिता ॥ ३३ ॥
त्वं तावदोषधीः सर्वा बीजानि उच्चावचानि च ।
सप्तर्षिभिः परिवृतः सर्वसत्त्वोपबृंहितः ॥ ३४ ॥
आरुह्य बृहतीं नावं विचरिष्यस्यविक्लवः ।
एकार्णवे निरालोके ऋषीणामेव वर्चसा ॥ ३५ ॥
दोधूयमानां तां नावं समीरेण बलीयसा ।
उपस्थितस्य मे शृंगे निबध्नीहि महाहिना ॥ ३६ ॥
अहं त्वां ऋषिभिः साकं सहनावमुदन्वति ।
विकर्षन् विचरिष्यामि यावद्‍ब्राह्मी निशा प्रभो ॥ ३७ ॥
मदीयं महिमानं च परं ब्रह्मेति शब्दितम् ।
वेत्स्यसि अनुगृहीतं मे संप्रश्नैर्विवृतं हृदि ॥ ३८ ॥
इत्थमादिश्य राजानं हरिरन्तरधीयत ।
सोऽन्ववैक्षत तं कालं यं हृषीकेश आदिशत् ॥ ३९ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! भगवान्‌ अपने अनन्य प्रेमी भक्तोंपर अत्यन्त प्रेम करते हैं। जब जगत्पति मत्स्यभगवान्‌ने अपने प्यारे भक्त राजर्षि सत्यव्रतकी यह प्रार्थना सुनी तो उनका प्रिय और हित करनेके लिये, साथ ही कल्पान्तके प्रलयकालीन समुद्रमें विहार करनेके लिये उनसे कहा ॥ ३१ ॥
श्रीभगवान्‌ने कहासत्यव्रत ! आजसे सातवें दिन भूर्लोक आदि तीनों लोक प्रलयके समुद्रमें डूब जायँगे ॥ ३२ ॥ उस समय जब तीनों लोक प्रलयकालकी जलराशिमें डूबने लगेंगे, तब मेरी प्रेरणासे तुम्हारे पास एक बहुत बड़ी नौका आयेगी ॥ ३३ ॥ उस समय तुम समस्त प्राणियोंके सूक्ष्मशरीरोंको लेकर सप्तर्षियोंके साथ उस नौकापर चढ़ जाना और समस्त धान्य तथा छोटे-बड़े अन्य प्रकारके बीजोंको साथ रख लेना ॥ ३४ ॥ उस समय सब ओर एकमात्र महासागर लहराता होगा। प्रकाश नहीं होगा। केवल ऋषियोंकी दिव्य ज्योतिके सहारे ही बिना किसी प्रकारकी विकलताके तुम उस बड़ी नावपर चढक़र चारों ओर विचरण करना ॥ ३५ ॥ जब प्रचण्ड आँधी चलनेके कारण नाव डगमगाने लगेगी, तब मैं इसी रूपमें वहाँ आ जाऊँगा और तुमलोग वासुकि नागके द्वारा उस नावको मेरे सींगमें बाँध देना ॥ ३६ ॥ सत्यव्रत ! इसके बाद जबतक ब्रह्माजीकी रात रहेगी, तबतक मैं ऋषियोंके साथ तुम्हें उस नावमें बैठाकर उसे खींचता हुआ समुद्रमें विचरण करूँगा ॥ ३७ ॥ उस समय जब तुम प्रश्र करोगे, तब मैं तुम्हें उपदेश दूँगा। मेरे अनुग्रहसे मेरी वास्तविक महिमा, जिसका नाम परब्रह्महै, तुम्हारे हृदयमें प्रकट हो जायगी और तुम उसे ठीक-ठीक जान लोगे ॥ ३८ ॥ भगवान्‌ राजा सत्यव्रतको यह आदेश देकर अन्तर्धान हो गये। अत: अब राजा सत्यव्रत उसी समयकी प्रतीक्षा करने लगे, जिसके लिये भगवान्‌ ने आज्ञा दी थी ॥३९॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



3 टिप्‍पणियां:

  1. जय श्री सीताराम

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  2. 🌼🍂💐जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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  3. जय श्री सीताराम

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