॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – चौबीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)
भगवान् के मत्स्यावतार की कथा
तत्र राजऋषिः कश्चित् नाम्ना सत्यव्रतो महान् ।
नारायणपरोऽतप्यत् तपः स सलिलाशनः ॥ १० ॥
योऽसौ अस्मिन् महाकल्पे तनयः स विवस्वतः ।
श्राद्धदेव इति ख्यातो मनुत्वे हरिणार्पितः ॥ ११ ॥
एकदा कृतमालायां कुर्वतो जलतर्पणम् ।
तस्याञ्जलि उदके काचित् शफर्येकाभ्यपद्यत ॥ १२ ॥
सत्यव्रतोऽञ्जलिगतां सह तोयेन भारत ।
उत्ससर्ज नदीतोये शफरीं द्रविडेश्वरः ॥ १३ ॥
तं आह सातिकरुणं महाकारुणिकं नृपम् ।
यादोभ्यो ज्ञातिघातिभ्यो दीनां मां दीनवत्सल ।
कथं विसृजसे राजन् भीतामस्मिन् सरिज्जले ॥ १४ ॥
परीक्षित् ! उस समय सत्यव्रत नामके एक बड़े उदार एवं
भगवत्परायण राजर्षि केवल जल पीकर तपस्या कर रहे थे ॥ १० ॥ वही सत्यव्रत वर्तमान
महाकल्पमें विवस्वान् (सूर्य) के पुत्र श्राद्धदेवके नामसे विख्यात हुए और उन्हें
भगवान् ने वैवस्वत मनु बना दिया ॥ ११ ॥ एक दिन वे राजर्षि कृतमाला नदीमें जलसे
तर्पण कर रहे थे। उसी समय उनकी अञ्जलिके जलमें एक छोटी-सी मछली आ गयी ॥ १२ ॥
परीक्षित् ! द्रविड देशके राजा सत्यव्रतने अपनी अञ्जलिमें आयी हुई मछलीको जलके
साथ ही फिरसे नदीमें डाल दिया ॥ १३ ॥ उस मछलीने बड़ी करुणाके साथ परम दयालु राजा
सत्यव्रतसे कहा—‘राजन् ! आप बड़े दीनदयालु हैं। आप जानते ही हैं कि जलमें
रहनेवाले जन्तु अपनी जातिवालोंको भी खा डालते हैं। मैं उनके भयसे अत्यन्त व्याकुल
हो रही हूँ। आप मुझे फिर इसी नदीके जलमें क्यों छोड़ रहे हैं ? ॥ १४ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
जय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएंOm namo narayanay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं🌼💖🍂जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण