मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥



श्रीमद्भागवतमहापुराण

नवम स्कन्ध पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)



ऋचीक, जमदग्नि और परशुरामजी का चरित्र



अग्निहोत्रीं उपावर्त्य सवत्सां परवीरहा ।

समुपेत्याश्रमं पित्रे परिक्लिष्टां समर्पयत् ॥ ३६ ॥

स्वकर्म तत्कृतं रामः पित्रे भ्रातृभ्य एव च ।

वर्णयामास तत् श्रुत्वा जमदग्निरभाषत ॥ ३७ ॥

राम राम महाबाहो भवान् पापमकारषीत् ।

अवधीत् नरदेवं यत् सर्वदेवमयं वृथा ॥ ३८ ॥

वयं हि ब्राह्मणास्तात क्षमयार्हणतां गताः ।

यया लोकगुरुर्देवः पारमेष्ठ्यमगात् पदम् ॥ ३९ ॥

क्षमया रोचते लक्ष्मीः ब्राह्मी सौरी यथा प्रभा ।

क्षमिणामाशु भगवान् तुष्यते हरिरीश्वरः ॥ ४० ॥

राज्ञो मूर्धाभिषिक्तस्य वधो ब्रह्मवधाद् गुरुः ।

तीर्थसंसेवया चांहो जह्यङ्‌गाच्युतचेतनः ॥ ४१ ॥



परीक्षित्‌ ! विपक्षी वीरों के नाशक परशुरामजी ने बछड़े के साथ कामधेनु लौटा ली। वह बहुत ही दुखी हो रही थी। उन्होंने उसे अपने आश्रमपर लाकर पिताजीको सौंप दिया ॥ ३६ ॥ और माहिष्मतीमें सहस्रबाहुने तथा उन्होंने जो कुछ किया था, सब अपने पिताजी तथा भाइयोंको कह सुनाया। सब कुछ सुनकर जमदग्रि मुनिने कहा॥ ३७ ॥ हाय, हाय, परशुराम ! तुमने बड़ा पाप किया। राम , राम ! तुम बड़े वीर हो; परंतु सर्वदेवमय नरदेवका तुमने व्यर्थ ही वध किया ॥ ३८ ॥ बेटा ! हमलोग ब्राह्मण हैं। क्षमाके प्रभावसे ही हम संसारमें पूजनीय हुए हैं। और तो क्या, सबके दादा ब्रह्माजी भी क्षमाके बलसे ही ब्रह्मपदको प्राप्त हुए हैं ॥ ३९ ॥ ब्राह्मणोंकी शोभा क्षमाके द्वारा ही सूर्यकी प्रभाके समान चमक उठती है। सर्वशक्तिमान् भगवान्‌ श्रीहरि भी क्षमावानों पर ही शीघ्र प्रसन्न होते हैं ॥ ४० ॥ बेटा ! सार्वभौम राजाका वध ब्राह्मणकी हत्यासे भी बढक़र है। जाओ, भगवान्‌का स्मरण करते हुए तीर्थोंका सेवन करके अपने पापों को धो डालो॥ ४१ ॥



इति श्रीमद्‍भागवते महापुराणे पारमहंस्यां

संहितायां नवमस्कन्धे पञ्चदशोऽध्यायः ॥ १५ ॥



हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥



शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




4 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  2. जय श्री सीताराम

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  3. 🌸🌿🌷🍃जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नारायण नारायण हरि: ! हरि:

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