बुधवार, 11 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

सगर-चरित्र

श्रीशुक उवाच ।
हरितो रोहितसुतः चंपः तस्माद्विनिर्मिता ।
चंपापुरी सुदेवोऽतो विजयो यस्य चात्मजः ॥ १ ॥
भरुकस्तत्सुतस्तस्माद् वृकस्तस्यापि बाहुकः ।
सोऽरिभिर्हृतभू राजा सभार्यो वनमाविशत् ॥ २ ॥
वृद्धं तं पञ्चतां प्राप्तं महिष्यनु मरिष्यती ।
और्वेण जानतात्मानं प्रजावन्तं निवारिता ॥ ३ ॥
आज्ञायास्यै सपत्‍नीभिः गरो दत्तोऽन्धसा सह ।
सह तेनैव सञ्जातः सगराख्यो महायशाः ॥ ४ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंरोहितका पुत्र था हरित। हरितसे चम्प हुआ। उसीने चम्पापुरी बसायी थी। चम्प से सुदेव और उसका पुत्र विजय हुआ ॥ १ ॥ विजय का भरुक, भरुक का वृक और वृक का पुत्र हुआ बाहुक। शत्रुओं ने बाहुक से राज्य छीन लिया, तब वह अपनी पत्नी के साथ वन में चला गया ॥ २ ॥ वनमें जानेपर बुढ़ापेके कारण जब बाहुक की मृत्यु हो गयी, तब उसकी पत्नी भी उसके साथ सती होनेको उद्यत हुई। परंतु महर्षि और्वको यह मालूम था कि इसे गर्भ है। इसलिये उन्होंने उसे सती होनेसे रोक दिया ॥ ३ ॥ जब उसकी सौतोंको यह बात मालूम हुई, तो उन्होंने उसे भोजनके साथ गर (विष) दे दिया। परंतु गर्भपर उस विषका कोई प्रभाव नहीं पड़ा; बल्कि उस विष को लिये हुए ही एक बालकका जन्म हुआ, जो गर के साथ पैदा होनेके कारण सगरकहलाया। सगर बड़े यशस्वी राजा हुए ॥ ४ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



4 टिप्‍पणियां:

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - सत्ताईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - सत्ताईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४) प्रकृति-पुरुषके विवेक से मोक्ष-प्राप्ति का वर्णन...