।। श्रीहरिः ।।
कामना और आवश्यकता (पोस्ट 03)
कामनाओं के त्याग से आवश्यकता की पूर्ति हो जाती है‒यह नियम है । कामना का त्याग करने में हम स्वतन्त्र हैं ।
कामना किसी में भी निरन्तर नहीं रहती, प्रत्युत उत्पन्न-नष्ट होती रहती है । परन्तु आवश्यकता
निरन्तर रहती है । हमें सत्ता चाहिये तो नित्य सत्ता चाहिये, ज्ञान चाहिये तो
अनन्त ज्ञान चाहिये, सुख चाहिये तो अनन्त सुख चाहिये‒यह सत्-चित्-आनन्द की आवश्यकता हमारे में निरन्तर रहती है ।
निरन्तर न रहने वाली कामना को तो हम पकड़ लेते हैं, पर निरन्तर रहनेवाली आवश्यकता की तरफ हम ध्यान ही नहीं देते‒यह हमारी भूल है ।
अगर हम कामनाओं का त्याग कर दें तो परमात्मा की प्राप्ति हो जायगी अथवा
परमात्मा की प्राप्ति कर लें तो कामनाओं का त्याग हो जायगा । इन दोनों को ही गीता ने
‘योग’ कहा है‒
तं विद्यादुःखसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम् ।
(६ । २३)
‘जिसमें दुःखोंके संयोगका ही
वियोग है, उसीको योग नामसे
जानना चाहिये ।’
समत्वं योग उच्यते ।
(२ । ४८)
‘समत्व ही योग कहा जाता है ।’
तात्पर्य है कि जड़ता का त्याग करना भी योग है और चिन्मयता में स्थित होना भी
योग है । दुःखरूप संसार से माना हुआ सम्बन्ध ही ‘दुःखसंयोग’ है । दुःखों का घर होनेसे संसार ‘दुःखालय’ है‒‘दुःखालयमशाश्वतम्’ (गीता ८ । १५) । जैसे पुस्तकालय में पुस्तकें मिलती हैं, वस्त्रालय में
वस्त्र मिलता है, भोजनालय में भोजन मिलता है, ऐसें ही दुःखालय में दुःख-ही-दुःख मिलता है । दुःखालयमें सुख ही नहीं मिलता, फिर आनन्द तो दूर रहा ! परन्तु परमात्मा में आनन्द-ही-आनन्द
है‒ ‘यं लब्ध्वा
चापरं लाभ मन्यते नाधिकं ततः’ (गीता ६ । २२) ।
ऐसे महान् आनन्दकी ही हमें आवश्यकता है, जिसकी पूर्ति के लिये ही हमें यह मनुष्यजन्म मिला है ।
मनुष्य अनन्तकाल तक जन्मता-मरता रहे तो भी उसकी आवश्यकता मिटेगी नहीं और कामना
टिकेगी नहीं । बाल्यावस्था में खिलौनों की कामना होती है, फिर बड़े होने पर रुपयोंकी कामना हो जाती है, फिर
स्त्री-पुत्र, मान-बड़ाई आदि की
कामना हो जाती है । इस प्रकार कोई भी कामना टिकती नहीं, बदलती रहती है, पर आवश्यकता कभी मिटती नहीं, बदलती नहीं । उस आवश्यकता की पूर्ति के लिये ही कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग
ध्यानयोग आदि साधन हैं ।
नारायण ! नारायण !!
(शेष आगामी पोस्ट में )
------गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा
प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की ‘सत्संग
मुक्ताहार’ पुस्तक’ से
जय श्री सीताराम
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