बुधवार, 29 मार्च 2023

गीता में ज्योतिष



महाप्रलयपर्यन्तं कालचक्रं प्रकीर्तितम् ।
कालचक्रविमोक्षार्थं श्रीकृष्णं  शरणं व्रज ॥

ज्योतिष में काल मुख्य है अर्थात् काल को लेकर ही ज्योतिष चलता है । उसी कालकों भगवान्‌ने अपना स्वरूप बताया है कि ‘गणना करनेवालों में मैं काल हूँ’‒‘कालः कलयतामहम्’ (१० । ३०) । उस कालकी गणना सूर्य से होती है । इसी सूर्य को भगवान्‌ ने ‘ज्योतिषां रविरंशुमान्’ (१० । २१) कहकर अपना स्वरूप बताया है ।

सत्ताईस नक्षत्र होते है । नक्षत्रों का वर्णन भगवान्‌ ने ‘नक्षत्राणामहं शशी’ (१० । २१) पदों से किया है । इनमेंसे सवा दो नक्षत्रों की एक राशि होती है । इस तरह सत्ताईस नक्षत्रों की बारह राशियों होती है । उन बारह राशियोंपर सूर्य भ्रमण करता है अर्थात् एक राशिपर सूर्य एक महीना रहता है । महीनों का वर्णन भगवान्‌ ने ‘मासानां मार्गशीर्षोऽहम्’ (१० । ३५) पदोंसे किया है । दो महीनोंकी एक ऋतु होती है, जिसका वर्णन ‘ऋतूनां कुसुमाकरः’ पदों से किया गया है । तीन ऋतुओं का एक अयन होता है । अयन दो होते हैं‒उत्तरायण और दक्षिणायन; जिनका वर्णन आठवें अध्यायके चौबीसवें-पचीसवें श्लोकों में हुआ है । इन दोनों अयनों को मिलाकर एक वर्ष होता है । लाखों वर्षोंका एक युग होता है [*] जिसका वर्णन भगवान्‌ ने ‘सम्भवामि युगे युगे’ (४ ।८) पदों से किया है । ऐसे चार (सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि) युगोंकी एक चतुर्युगी होती है । ऐसी एक हजार चतुर्युगी का ब्रह्मा का एक दिन (सर्ग) और एक हजार चतुर्युगी की ही ब्रह्माकी एक रात (प्रलय) होती है, जिसका वर्णन आठवें अध्याय के सत्रहवें श्लोकसे उन्नीसवें श्लोकतक किया गया है । इस तरह ब्रह्माकी सौ वर्षकी आयु होती है । ब्रह्मा की आयु पूरी होने पर महाप्रलय होता है, जिसमें सब कुछ परमात्मा में लीन हो जाता है । इसका वर्णन भगवान्‌ ने ‘कल्पक्षये’ (९ । ७) पद से किया है । इस महाप्रलयमें केवल ‘अक्षयकाल’-रूप एक परमात्मा ही रह जाते है, जिसका वर्णन भगवान्‌ ने ‘अहमेवाक्षयः कालः’ (१० । ३३) पदोंसे किया है ।

तात्पर्य यह हुआ कि महाप्रलय तक ही ज्योतिष चलता है अर्थात् प्रकृतिके राज्य में ही ज्योतिष चलता है, प्रकृति से अतीत परमात्मा में ज्योतिष नहीं चलता । अतः मनुष्य को चाहिये कि वह इस प्राकृत कालचक्र से छूटनेके लिये, इससे अतीत होनेके लिये अक्षयकाल-रूप परमात्मा की शरण ले ।
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[*] सत्रह लाख अट्ठाईस हजार वर्षों का ‘सत्ययुग’, बारह लाख छियानबे हजार वर्षों का ‘त्रेतायुग’, आठ लाख चौसठ हजार वर्षोंका ‘द्वापरयुग’ और चार लाख बत्तीस हजार वर्षों का ‘कलियुग’ होता है ।

‒---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘गीता-दर्पण’ पुस्तक से


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