देवता तीन तरहके होते हैं‒
(१) आजानदेवता‒जो महासर्ग से महाप्रलय तक (एक कल्पतक) देवलोक में रहते हैं, वे ‘आजानदेवता’ कहलाते हैं । ये देवलोक के बड़े अधिकारी होते हैं । उनके भी दो भेद होते हैं‒
(क) ईश्वरकोटि के देवता‒शिव, शक्ति, गणेश, सूर्य और विष्णु‒यें पाँचों ईश्वर भी हैं और देवता भी । इन पाँचों के अलग-अलग सम्प्रदाय चलते हैं । शिवजी के शैव, शक्तिके शाक्त, गणपतिके गाणपत, सूर्य के सौर और विष्णु के वैष्णव कहलाते हैं । इन पाँचोंमें एक ईश्वर होता है तो अन्य चार देवता होते हैं । वास्तव में ये पाँचों ईश्वरकोटि के ही हैं ।
(ख) साधारण देवता‒इन्द्र, वरुण, मरुत्, रुद्र, आदित्य, वसु आदि सब साधारण देवता हैं ।
(२) मर्त्यदेवता‒जो मनुष्य मृत्युलोक में यज्ञ आदि करके स्वर्गादि लोकों को प्राप्त करते हैं, वे ‘मर्त्यदेवता’कहलाते हैं । ये अपने पुण्यों के बल पर वहाँ रहते हैं और पुण्य क्षीण होने पर फिर मृत्युलोक में लौट आते हैं‒
“ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोक विशालं
क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति ।“
………..(गीता ९ । २१)
(३) अधिष्ठातृदेवता‒सृष्टि की प्रत्येक वस्तु का एक मालिक होता है, जिसे ‘अधिष्ठातृदेवता’ कहते हैं । नक्षत्र, तिथि, वार, महीना, वर्ष, युग, चन्द्र, सूर्य, समुद्र, पृथ्वी, जल, वायु, तेज, आकाश, शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि आदि सृष्टि की मुख्य-मुख्य वस्तुओं के अधिष्ठातृदेवता ‘आजानदेवता’ बनते हैं । और कुआँ, वृक्ष आदि साधारण वस्तुओं के अधिष्ठातृदेवता‘मर्त्यदेवता’ (जीव) बनते हैं ।
(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “कल्याण-पथ “ पुस्तकसे
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