गुरुवार, 31 अक्टूबर 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-तीसरा अध्याय..(पोस्ट०५)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - तीसरा अध्याय..(पोस्ट०५)

भगवान्‌ के अन्य लीला-चरित्रोंका वर्णन

उत्तरायां धृतः पूरोः वंशः साध्वभिमन्युना ।
स वै द्रौण्यस्त्रसंछिन्नः पुनर्भगवता धृतः ॥ १७ ॥
अयाजयद् धर्मसुतं अश्वमेधैस्त्रिभिर्विभुः ।
सोऽपि क्ष्मामनुजै रक्षन् रेमे कृष्णमनुव्रतः ॥ १८ ॥
भगवान् अपि विश्वात्मा लोकवेदपथानुगः ।
कामान् सिषेवे द्वार्वत्यां असक्तः साङ्ख्यमास्थितः ॥ १९ ॥

उत्तरा के उदर में जो अभिमन्यु ने पूरुवंश का बीज स्थापित किया था, वह भी अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से नष्ट-सा हो चुका था; किन्तु भगवान्‌ ने उसे बचा लिया ॥ १७ ॥ उन्होंने धर्मराज युधिष्ठिर से तीन अश्वमेध-यज्ञ करवाये और वे भी श्रीकृष्ण के अनुगामी होकर अपने छोटे भाइयोंकी सहायतासे पृथ्वीकी रक्षा करते हुए बड़े आनन्दसे रहने लगे ॥ १८ ॥ विश्वात्मा श्रीभगवान्‌ ने भी द्वारकापुरी में रहकर लोक और वेद की मर्यादा का पालन करते हुए सब प्रकार के भोग भोगे, किन्तु सांख्ययोग की स्थापना करनेके लिये उनमें कभी आसक्त नहीं हुए ॥ १९ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. हे अनंत कोटि ब्रह्मांड के स्वामी हे त्रिभुवन नाथ हे योगेश्वर द्वारकानाथ श्रीकृष्ण गोविंद
    सहस्त्रों सहस्त्रों कोटिश:चरण वंदन 🙏💟🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव

    जवाब देंहटाएं

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - आठवां अध्याय..(पोस्ट०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  चतुर्थ स्कन्ध – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०१) ध्रुवका वन-गमन मैत्रेय उवाच - सनकाद्या नारदश्च ऋभुर्...