॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - नवाँ अध्याय..(पोस्ट१४)
ब्रह्माजी द्वारा भगवान् की स्तुति
यच्चकर्थाङ्ग मत्स्तोत्रं मत्कथा अभ्युदयांकितम् ।
यद्वा तपसि ते निष्ठा स एष मदनुग्रहः ॥ ३८ ॥
प्रीतोऽहमस्तु भद्रं ते लोकानां विजयेच्छया ।
यद् अस्तौषीर्गुणमयं निर्गुणं मानुवर्णयन् ॥ ३९ ॥
य एतेन पुमान्नित्यं स्तुत्वा स्तोत्रेण मां भजेत् ।
तस्याशु सम्प्रसीदेयं सर्वकामवरेश्वरः ॥ ४० ॥
प्यारे ब्रह्माजी ! तुमने जो मेरी कथाओं के वैभवसे युक्त मेरी स्तुति की है और तपस्या में जो तुम्हारी निष्ठा है, वह भी मेरी ही कृपा का फल है ॥ ३८ ॥ लोक-रचना की इच्छा से तुमने सगुण प्रतीत होनेपर भी जो निर्गुणरूप से मेरा वर्णन करते हुए स्तुति की है, उससे मैं बहुत प्रसन्न हूँ; तुम्हारा कल्याण हो ॥ ३९ ॥ मैं समस्त कामनाओं और मनोरथोंको पूर्ण करनेमें समर्थ हूँ। जो पुरुष नित्यप्रति इस स्तोत्रद्वारा स्तुति करके मेरा भजन करेगा, उसपर मैं शीघ्र ही प्रसन्न हो जाऊँगा ॥ ४० ॥
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🪷ॐनमो भगवते वासुदेवाय🪷
जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव
नारायण नारायण नारायण नारायण