॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - तेरहवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)
वाराह अवतार की कथा
तेषां सतां वेदवितानमूर्तिः
ब्रह्मावधार्यात्मगुणानुवादम् ।
विनद्य भूयो विबुधोदयाय
गजेन्द्रलीलो जलमाविवेश ॥ २६ ॥
उत्क्षिप्तवालः खचरः कठोरः
सटा विधुन्वन् खररोमशत्वक् ।
खुराहताभ्रः सितदंष्ट्र ईक्षा
ज्योतिर्बभासे भगवान्महीध्रः ॥ २७ ॥
घ्राणेन पृथ्व्याः पदवीं विजिघ्रन्
क्रोडापदेशः स्वयमध्वराङ्गः ।
करालदंष्ट्रोऽप्यकरालदृग्भ्याम्
उद्वीक्ष्य विप्रान् गृणतोऽविशत्कम् ॥ २८ ॥
स वज्रकूटाङ्गनिपातवेग
विशीर्णकुक्षिः स्तनयन्नुदन्वान् ।
उत्सृष्टदीर्घोर्मिभुजैरिवार्तः
चुक्रोश यज्ञेश्वर पाहि मेति ॥ २९ ॥
भगवान् के स्वरूप का वेदों में विस्तारसे वर्णन किया गया है; अत: उन मुनीश्वरों ने जो स्तुति की, उसे वेदरूप मानकर भगवान् बड़े प्रसन्न हुए और एक बार फिर गरजकर देवताओं के हित के लिये गजराजकी-सी लीला करते हुए जल में घुस गये ॥ २६ ॥ पहले वे सूकररूप भगवान् पूँछ उठाकर बड़े वेगसे आकाशमें उछले और अपनी गर्दनके बालोंको फटकारकर खुरोंके आघातसे बादलोंको छितराने लगे। उनका शरीर बड़ा कठोर था, त्वचापर कड़े-कड़े बाल थे, दाढ़ें सफेद थीं और नेत्रोंसे तेज निकल रहा था, उस समय उनकी बड़ी शोभा हो रही थी ॥ २७ ॥ भगवान् स्वयं यज्ञपुरुष हैं तथापि सूकररूप धारण करने के कारण अपने नाकसे सूँघ-सूँघकर पृथ्वीका पता लगा रहे थे। उनकी दाढ़ें बड़ी कठोर थीं। इस प्रकार यद्यपि वे बड़े क्रूर जान पड़ते थे, तथापि अपनी स्तुति करनेवाले मरीचि आदि मुनियोंकी ओर बड़ी सौम्य दृष्टिसे निहारते हुए उन्होंने जलमें प्रवेश किया ॥ २८ ॥ जिस समय उनका वज्रमय पर्वतके समान कठोर कलेवर जलमें गिरा, तब उसके वेगसे मानो समुद्रका पेट फट गया और उसमें बादलोंकी गडग़ड़ाहटके समान बड़ा भीषण शब्द हुआ। उस समय ऐसा जान पड़ता था मानो अपनी उत्ताल तरङ्गरूप भुजाओंको उठाकर वह बड़े आर्तस्वरसे ‘हे यज्ञेश्वर ! मेरी रक्षा करो।’ इस प्रकार पुकार रहा है ॥ २९ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💟🥀जय श्रीहरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव !!
जय श्री कृष्ण। अनेक अवतार ग्रहण कर सृष्टि की रचना एवं रक्षा की। इसी तरह सनातन धर्म की रक्षा कीजिए 🙏🙏🌷🌷
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