मंगलवार, 4 फ़रवरी 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - तेरहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - तेरहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

वाराह अवतार की कथा

खुरैः क्षुरप्रैर्दरयंस्तदाप
    उत्पारपारं त्रिपरू रसायाम् ।
ददर्श गां तत्र सुषुप्सुरग्रे
    यां जीवधानीं स्वयमभ्यधत्त ॥ ३० ॥
स्वदंष्ट्रयोद्धृत्य महीं निमग्नां
    स उत्थितः संरुरुचे रसायाः ।
तत्रापि दैत्यं गदयापतन्तं
    सुनाभसन्दीपिततीव्रमन्युः ॥ ३१ ॥
जघान रुन्धानमसह्यविक्रमं
    स लीलयेभं मृगराडिवाम्भसि ।
तद्रक्तपङ्काङ्‌कितगण्डतुण्डो
    यथा गजेन्द्रो जगतीं विभिन्दन् ॥ ३२ ॥
तमालनीलं सितदन्तकोट्या
    क्ष्मामुत्क्षिपन्तं गजलीलयाङ्ग ।
प्रज्ञाय बद्धाञ्जलयोऽनुवाकैः
    विरिञ्चिमुख्या उपतस्थुरीशम् ॥ ३३ ॥

तब भगवान्‌ यज्ञमूर्ति अपने बाणके समान पैने खुरों से जल को चीरते हुए उस अपार जलराशि के उस पार पहुँचे। वहाँ रसातल में उन्होंने समस्त जीवोंकी आश्रयभूता पृथ्वीको देखा, जिसे कल्पान्त में शयन करने के लिये उद्यत श्रीहरि ने स्वयं अपने ही उदरमें लीन कर लिया था ॥ ३० ॥
फिर, वे (वराहभगवान्‌) जलमें डूबी हुई पृथ्वीको अपनी दाढ़ोंपर लेकर रसातल से ऊपर आये। उस समय उनकी बड़ी शोभा हो रही थी। जलसे बाहर आते समय उनके मार्गमें विघ्र डालनेके लिये महापराक्रमी हिरण्याक्षने जलके भीतर ही उनपर गदासे आक्रमण किया। इससे उनका क्रोध चक्र के समान तीक्ष्ण हो गया और उन्होंने उसे लीलासे ही इस प्रकार मार डाला, जैसे सिंह हाथीको मार डालता है। उस समय उसके रक्तसे थूथनी तथा कनपटी सन जानेके कारण वे ऐसे जान पड़ते थे मानो कोई गजराज लाल मिट्टीके टीलेमें टक्कर मारकर आया हो ॥३१-३२॥ तात ! जैसे गजराज अपने दाँतोंपर कमल-पुष्प धारण कर ले, उसी प्रकार अपने सफेद दाँतोंकी नोकपर पृथ्वी को धारण कर जलसे बाहर निकले हुए, तमाल के समान नीलवर्ण वराहभगवान्‌ को देखकर ब्रह्मा, मरीचि आदि को निश्चय हो गया कि ये भगवान्‌ ही हैं । तब वे हाथ जोडक़र वेदवाक्यों से उनकी स्तुति करने लगे ॥ ३३ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🥀जय श्रीहरि:🙏🙏
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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