बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - तेरहवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - तेरहवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)

वाराह अवतार की कथा

ऋषय ऊचुः

जितं जितं तेऽजित यज्ञभावन
    त्रयीं तनुं स्वां परिधुन्वते नमः ।
यद् रोमगर्तेषु निलिल्युरध्वराः
    तस्मै नमः कारणसूकराय ते ॥ ३४ ॥
रूपं तवैतन्ननु दुष्कृतात्मनां
    दुर्दर्शनं देव यदध्वरात्मकम् ।
छन्दांसि यस्य त्वचि बर्हिरोम-
    स्वाज्यं दृशि त्वङ्‌घ्रिषु चातुर्होत्रम् ॥ ३५ ॥
स्रुक्तुण्ड आसीत्स्रुव ईश नासयोः
    इडोदरे चमसाः कर्णरन्ध्रे ।
प्राशित्रमास्ये ग्रसने ग्रहास्तु ते
    यच्चर्वणं ते भगवन्नग्निहोत्रम् ॥ ३६ ॥

ऋषियोंने कहा—भगवान्‌ अजित् ! आपकी जय हो, जय हो। यज्ञपते ! आप अपने वेदत्रयीरूप विग्रह को फटकार रहे हैं; आपको नमस्कार है। आपके रोम-कूपों में सम्पूर्ण यज्ञ लीन हैं। आपने पृथ्वीका उद्धार करने के लिये ही यह सूकररूप धारण किया है; आपको नमस्कार है ॥३४॥ देव ! दुराचारियों को आपके इस शरीर का दर्शन होना अत्यन्त कठिन है; क्योंकि यह यज्ञरूप है । इसकी त्वचामें गायत्री आदि छन्द, रोमावलीमें कुश, नेत्रोंमें घृत तथा चारों चरणोंमें होता, अध्वर्यु, उद्गाता और ब्रह्मा—इन चारों ऋत्विजोंके कर्म हैं ॥ ३५ ॥ ईश ! आपकी थूथनी (मुखके अग्रभाग)में स्रुक् है, नासिकाछिद्रों में स्रुवा है, उदरमें इडा (यज्ञीय भक्षणपात्र) है, कानोंमें चमस है, मुखमें प्राशित्र (ब्रह्मभागपात्र) है और कण्ठछिद्रमें ग्रह (सोमपात्र) है। भगवन् ! आपका जो चबाना है, वही अग्निहोत्र है ॥ ३६ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹🌷💟🥀जय श्रीहरि:🙏
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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