॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - सत्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष का जन्म तथा
हिरण्याक्ष की दिग्विजय
खराश्च कर्कशैः क्षत्तः खुरैर्घ्नन्तो धरातलम् ।
खार्कार रभसा मत्ताः पर्यधावन् वरूथशः ॥ ११ ॥
रुदन्तो रासभत्रस्ता नीडाद् उदपतन्खगाः ।
घोषेऽरण्ये च पशवः शकृन् मूत्रमकुर्वत ॥ १२ ॥
गावः अत्रसन् असृग्दोहाः तोयदाः पूयवर्षिणः ।
व्यरुदन् देवलिङ्गानि द्रुमाः पेतुर्विनानिलम् ॥ १३ ॥
ग्रहान् पुण्यतमानन्ये भगणांश्चापि दीपिताः ।
अतिचेरुः वक्रगत्या युयुधुश्च परस्परम् ॥ १४ ॥
दृष्ट्वा अन्यांश्च महोत्पातान् अतत्-तत्त्वविदः प्रजाः ।
ब्रह्मपुत्रान् ऋते भीता मेनिरे विश्वसंप्लवम् ॥ १५ ॥
(श्रीमैत्रेयजी कहरहे हैं) विदुरजी ! झुंड-के-झुंड गधे अपने कठोर खुरोंसे पृथ्वी खोदते और रेंकनेका शब्द करते मतवाले होकर इधर-उधर दौडऩे लगे ॥ ११ ॥ पक्षी गधोंके शब्दसे डरकर रोते-चिल्लाते अपने घोंसलोंसे उडऩे लगे। अपनी खिरकोंमें बँधे हुए और वनमें चरते हुए गाय-बैल आदि पशु डरके मारे मल-मूत्र त्यागने लगे ॥ १२ ॥ गौएँ ऐसी डर गयीं कि दुहनेपर उनके थनोंसे खून निकलने लगा, बादल पीबकी वर्षा करने लगे, देवमूर्तियोंकी आँखोंसे आँसू बहने लगे और आँधीके बिना ही वृक्ष उखड़-उखडक़र गिरने लगे ॥ १३ ॥ शनि, राहु आदि क्रूर ग्रह प्रबल होकर चन्द्र, बृहस्पति आदि सौम्य ग्रहों तथा बहुत-से नक्षत्रों को लाँघकर वक्रगति से चलने लगे तथा आपस में युद्ध करने लगे ॥ १४ ॥ ऐसे ही और भी अनेकों भयङ्कर उत्पात देखकर सनकादि के सिवा और सब जीव भयभीत हो गये तथा उन उत्पातों का मर्म न जानने के कारण उन्होंने यही समझा कि अब संसार का प्रलय होनेवाला है ॥ १५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
नारायण नारायण नारायण नारायण 🙏श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे 🙏 हे नाथ नारायण वासुदेव: !! 💟 जय श्री हरि:🙏🙏
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