सोमवार, 31 मार्च 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)

हिरण्याक्ष के साथ वराह भगवान्‌ का युद्ध

एषा घोरतमा सन्ध्या लोकच्छम्बट्करी प्रभो ।
उपसर्पति सर्वात्मन् सुराणां जयमावह ॥ २६ ॥
अधुनैषोऽभिजिन्नाम योगो मौहूर्तिको ह्यगात् ।
शिवाय नस्त्वं सुहृदां आशु निस्तर दुस्तरम् ॥ २७ ॥
दिष्ट्या त्वां विहितं मृत्युं अयं आसादितः स्वयम् ।
विक्रम्यैनं मृधे हत्वा लोकान् आधेहि शर्मणि ॥ २८ ॥

(श्रीब्रह्माजी कहते हैं) ‘प्रभो ! देखिये, लोकों का संहार करनेवाली संन्ध्या की भयङ्कर वेला आना ही चाहती है। सर्वात्मन् ! आप उससे पहले ही इस असुर को मारकर देवताओं को विजय प्रदान कीजिये ॥ २६ ॥ इस समय अभिजित् नामक मङ्गलमय मुहूर्त का भी योग आ गया है। अत: अपने सुहृद् हमलोगों के कल्याण के लिये शीघ्र ही इस दुर्जय दैत्य से निपट लीजिये ॥ २७ ॥ प्रभो ! इसकी मृत्यु आप के ही हाथ बदी है। हमलोगों के बड़े भाग्य हैं कि यह स्वयं ही अपने कालरूप आपके पास आ पहुँचा है। अब आप युद्धमें बलपूर्वक इसे मारकर लोकों को शान्ति प्रदान कीजिये॥२८॥

इति श्रीमद्‌भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
तृतीयस्कन्धे अष्टादशोऽध्यायः ॥ १८ ॥

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💟🥀जय श्रीकृष्ण🙏🙏
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण हरि: !! हरि: !!

    जवाब देंहटाएं

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०७) कर्दमजी की तपस्या और भगवान्‌ का वरदान समाहितं ते ...