शुक्रवार, 18 अप्रैल 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

कर्दमजी की तपस्या और भगवान्‌ का वरदान

मैत्रेय उवाच -

प्रजाः सृजेति भगवान् कर्दमो ब्रह्मणोदितः ।
सरस्वत्यां तपस्तेपे सहस्राणां समा दश ॥ ६ ॥
ततः समाधियुक्तेन क्रियायोगेन कर्दमः ।
सम्प्रपेदे हरिं भक्त्या प्रपन्नवरदाशुषम् ॥ ७ ॥
तावत्प्रसन्नो भगवान् पुष्कराक्षः कृते युगे ।
दर्शयामास तं क्षत्तः शाब्दं ब्रह्म दधद्वपुः ॥ ८ ॥
स तं विरजमर्काभं सितपद्मोत्पलस्रजम् ।
स्निग्धनीलालकव्रात वक्त्राब्जं विरजोऽम्बरम् ॥ ९ ॥
किरीटिनं कुण्डलिनं शङ्खचक्रगदाधरम् ।
श्वेतोत्पलक्रीडनकं मनःस्पर्शस्मितेक्षणम् ॥ १० ॥
विन्यस्तचरणाम्भोजं अंसदेशे गरुत्मतः ।
दृष्ट्वा खेऽवस्थितं वक्षः श्रियं कौस्तुभकन्धरम् ॥ ११ ॥
जातहर्षोऽपतन्मूर्ध्ना क्षितौ लब्धमनोरथः ।
गीर्भिस्त्वभ्यगृणात्प्रीति स्वभावात्मा कृताञ्जलिः ॥ १२ ॥

मैत्रेयजीने कहा—विदुरजी ! जब ब्रह्माजी ने भगवान्‌ कर्दम को आज्ञा दी कि तुम संतान की उत्पत्ति करो तो उन्होंने दस हजार वर्षोंतक सरस्वती नदीके तीरपर तपस्या की ॥ ६ ॥ वे एकाग्र चित्त से प्रेमपूर्वक पूजनोपचारद्वारा शरणागतवरदायक श्रीहरि की आराधना करने लगे ॥ ७ ॥ तब सत्ययुग के आरम्भ में कमलनयन भगवान्‌ श्रीहरि ने उनकी तपस्यासे प्रसन्न होकर उन्हें अपने शब्दब्रह्ममय स्वरूप से मूर्तिमान् होकर दर्शन दिये ॥ ८ ॥ भगवान्‌की वह भव्य मूर्ति सूर्यके समान तेजोमयी थी। वे गलेमें श्वेत कमल और कुमुदके फूलोंकी माला धारण किये हुए थे, मुखकमल नीली और चिकनी अलकावलीसे सुशोभित था। वे निर्मल वस्त्र धारण किये हुए थे ॥ ९ ॥ सिरपर झिलमिलाता हुआ सुवर्णमय मुकुट, कानोंमें जगमगाते हुए कुण्डल और कर-कमलोंमें शङ्ख, चक्र, गदा आदि आयुध विराजमान थे। उनके एक हाथमें क्रीडाके लिये श्वेत कमल सुशोभित था। प्रभुकी मधुर मुसकानभरी चितवन चित्तको चुराये लेती थी ॥ १० ॥ उनके चरणकमल गरुडजीके कंधोंपर विराजमान थे तथा वक्ष:स्थलमें श्रीलक्ष्मीजी और कण्ठमें कौस्तुभमणि सुशोभित थी। प्रभुकी इस आकाशस्थित मनोहर मूर्तिका दर्शन करके कर्दमजी को बड़ा हर्ष हुआ, मानो उनकी सभी कामनाएँ पूर्ण हो गयीं। उन्होंने सानन्द हृदयसे पृथ्वीपर सिर टेककर भगवान्‌ को साष्टाङ्ग प्रणाम किया और फिर प्रेमप्रवण चित्तसे हाथ जोडक़र सुमधुर वाणीसे वे उनकी स्तुति करने लगे ॥ ११-१२ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌹💖🥀🌹 जय श्रीहरि: !! 🙏
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    जय हो गरुड़ध्वज श्री हरि: !!
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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