गुरुवार, 24 अप्रैल 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)

कर्दमजी की तपस्या और भगवान्‌ का वरदान

मैत्रेय उवाच -

एवं तं अनुभाष्याथ भगवान् प्रत्यगक्षजः ।
जगाम बिन्दुसरसः सरस्वत्या परिश्रितात् ॥ ३३ ॥
निरीक्षतस्तस्य ययावशेष
     सिद्धेश्वराभिष्टुतसिद्धमार्गः ।
आकर्णयन् पत्ररथेन्द्रपक्षैः
     उच्चारितं स्तोममुदीर्णसाम ॥ ३४ ॥
अथ सम्प्रस्थिते शुक्ले कर्दमो भगवान् ऋषिः ।
आस्ते स्म बिन्दुसरसि तं कालं प्रतिपालयन् ॥ ३५ ॥
मनुः स्यन्दनमास्थाय शातकौम्भपरिच्छदम् ।
आरोप्य स्वां दुहितरं सभार्यः पर्यटन् महीम् ॥ ३६ ॥
तस्मिन् सुधन्वन्नहनि भगवान् यत्समादिशत् ।
उपायादाश्रमपदं मुनेः शान्तव्रतस्य तत् ॥ ३७ ॥

मैत्रेयजी कहते हैं—विदुरजी ! कर्दमऋषि से इस प्रकार सम्भाषण करके, इन्द्रियोंके अन्तर्मुख होनेपर प्रकट होनेवाले श्रीहरि सरस्वती नदीसे घिरे हुए बिन्दुसर-तीर्थसे (जहाँ कर्दमऋषि तप कर रहे थे) अपने लोकको चले गये ॥ ३३ ॥ भगवान्‌के सिद्धमार्ग (वैकुण्ठमार्ग) की सभी सिद्धेश्वर प्रशंसा करते हैं। वे कर्दमजीके देखते-देखते अपने लोकको सिधार गये। उस समय गरुडजीके पक्षोंसे जो साम की आधारभूता ऋचाएँ निकल रही थीं, उन्हें वे सुनते जाते थे॥३४॥
विदुरजी ! श्रीहरिके चले जानेपर भगवान्‌ कर्दम उनके बताये हुए समयकी प्रतीक्षा करते हुए बिन्दुसरोवरपर ही ठहरे रहे ॥ ३५ ॥ वीरवर ! इधर मनुजी भी महारानी शतरूपाके साथ सुवर्णजटित रथपर सवार होकर तथा उसपर अपनी कन्याको भी बिठाकर पृथ्वीपर विचरते हुए, जो दिन भगवान्‌ने बताया था, उसी दिन शान्तिपरायण महर्षि कर्दमके उस आश्रमपर पहुँचे ॥ ३६-३७ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🪷🌿🥀🪷जय श्री हरि:🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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