रविवार, 27 अप्रैल 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट११)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट११)

कर्दमजी की तपस्या और भगवान्‌ का वरदान

गृहीतार्हणमासीनं संयतं प्रीणयन् मुनिः ।
स्मरन् भगवदादेशं इत्याह श्लक्ष्णया गिरा ॥ ४९ ॥
नूनं चङ्क्रमणं देव सतां संरक्षणाय ते ।
वधाय चासतां यस्त्वं हरेः शक्तिर्हि पालिनी ॥ ५० ॥
योऽर्केन्दु अग्नीन्द्रवायूनां यमधर्मप्रचेतसाम् ।
रूपाणि स्थान आधत्से तस्मै शुक्लाय ते नमः ॥ ५१ ॥
न यदा रथमास्थाय जैत्रं मणिगणार्पितम् ।
विस्फूर्जत् चण्डकोदण्डो रथेन त्रासयन् अघान् ॥ ५२ ॥
स्वसैन्यचरणक्षुण्णं वेपयन् मण्डलं भुवः ।
विकर्षन् बृहतीं सेनां पर्यटसि अंशुमानिव ॥ ५३ ॥
तदैव सेतवः सर्वे वर्णाश्रमनिबन्धनाः ।
भगवद् रचिता राजन् भिद्येरन् बत दस्युभिः ॥ ५४ ॥
अधर्मश्च समेधेत लोलुपैर्व्यङ्कुशैर्नृभिः ।
शयाने त्वयि लोकोऽयं दस्युग्रस्तो विनङ्क्ष्यति ॥ ५५ ॥
अथापि पृच्छे त्वां वीर यदर्थं त्वं इहागतः ।
तद्वयं निर्व्यलीकेन प्रतिपद्यामहे हृदा ॥ ५६ ॥

जब मनुजी उनकी पूजा ग्रहण कर स्वस्थ-चित्तसे आसनपर बैठ गये, तब मुनिवर कर्दम ने भगवान्‌की आज्ञाका स्मरण कर उन्हें मधुर वाणीसे प्रसन्न करते हुए इस प्रकार कहा— ॥ ४९ ॥ ‘देव ! आप भगवान्‌ विष्णुकी पालनशक्तिरूप हैं, इसलिये आपका घूमना-फिरना नि:सन्देह सज्जनोंकी रक्षा और दुष्टोंके संहारके लिये ही होता है ॥ ५० ॥ आप साक्षात् विशुद्ध विष्णुस्वरूप हैं तथा भिन्न-भिन्न कार्योंके लिये सूर्य, चन्द्र, अग्रि, इन्द्र, वायु, यम, धर्म और वरुण आदि रूप धारण करते हैं; आपको नमस्कार है ॥ ५१ ॥ आप मणियोंसे जड़े हुए जयदायक रथपर सवार हो, अपने प्रचण्ड धनुषकी टङ्कार करते हुए उस रथकी घरघराहटसे ही पापियोंको भयभीत कर देते हैं और अपनी सेनाके चरणोंसे रौंदे हुए भूमण्डलको कँपाते अपनी उस विशाल सेनाको साथ लेकर पृथ्वीपर सूर्यके समान विचरते हैं। यदि आप ऐसा न करें तो चोर-डाकू भगवान्‌की बनायी हुई वर्णाश्रमधर्मकी मर्यादाको तत्काल नष्ट कर दें तथा विषयलोलुप निरङ्कुश मानवोंद्वारा सर्वत्र अधर्म फैल जाय। यदि आप संसारकी ओरसे निश्चिन्त हो जायँ तो यह लोक दुराचारियोंके पंजेमें पडक़र नष्ट हो जाय ॥ ५२—५५ ॥ तो भी वीरवर ! मैं आपसे पूछता हूँ कि इस समय यहाँ आपका आगमन किस प्रयोजनसे हुआ है ? मेरे लिये जो आज्ञा होगी, उसे मैं निष्कपट भावसे सहर्ष स्वीकार करूँगा ॥ ५६ ॥

इति श्रीमद्‌भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
तृतीयस्कन्धे एकविंशोऽध्यायः ॥ २१ ॥

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🥀जय श्रीहरि: !!🙏🙏
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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