॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - चौबीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)
श्रीकपिलदेवजी का जन्म
ज्ञानविज्ञानयोगेन कर्मणां उद्धरन्जटाः ।
हिरण्यकेशः पद्माक्षः पद्ममुद्रापदाम्बुजः ॥ १७ ॥
एष मानवि ते गर्भं प्रविष्टः कैटभार्दनः ।
अविद्यासंशयग्रन्थिं छित्त्वा गां विचरिष्यति ॥ १८ ॥
अयं सिद्धगणाधीशः साङ्ख्याचार्यैः सुसम्मतः ।
लोके कपिल इत्याख्यां गन्ता ते कीर्तिवर्धनः ॥ १९ ॥
मैत्रेय उवाच –
तौ आवाश्वास्य जगत्स्रष्टा कुमारैः सहनारदः ।
हंसो हंसेन यानेन त्रिधामपरमं ययौ ॥ २० ॥
[फिर ब्रह्माजी देवहूतिसे बोले—] राजकुमारी ! सुनहरे बाल, कमल-जैसे विशाल नेत्र और कमलाङ्कित चरण- कमलों वाले शिशु के रूप में कैटभासुर को मारनेवाले साक्षात् श्रीहरिने ही, ज्ञान-विज्ञानद्वारा कर्मोंकी वासनाओंका मूलोच्छेदन करनेके लिये, तेरे गर्भमें प्रवेश किया है। ये अविद्याजनित मोहकी ग्रन्थियों- को काटकर पृथ्वीमें स्वछन्द विचरेंगे ॥ १७-१८ ॥ ये सिद्धगणोंके स्वामी और सांख्याचार्योंके भी माननीय होंगे। लोकमें तेरी कीर्तिका विस्तार करेंगे और ‘कपिल’ नामसे विख्यात होंगे ॥ १९ ॥
श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—विदुरजी ! जगत् की सृष्टि करनेवाले ब्रह्माजी उन दोनोंको इस प्रकार आश्वासन देकर नारद और सनकादिको साथ ले, हंसपर चढक़र ब्रह्मलोकको चले गये ॥ २० ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🥀जय श्री हरि: !!🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
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