रविवार, 25 मई 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - पचीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - पचीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

देवहूति का प्रश्न तथा भगवान्‌ कपिलद्वारा 
भक्तियोग की महिमा का वर्णन

मैत्रेय उवाच –

इति स्वमातुर्निरवद्यमीप्सितं
     निशम्य पुंसां अपवर्गवर्धनम् ।
धियाभिनन्द्यात्मवतां सतां गतिः
     बभाष ईषत् स्मितशोभिताननः ॥ १२ ॥

श्रीभगवानुवाच –

योग आध्यात्मिकः पुंसां मतो निःश्रेयसाय मे ।
अत्यन्तोपरतिर्यत्र दुःखस्य च सुखस्य च ॥ १३ ॥
तमिमं ते प्रवक्ष्यामि यं अवोचं पुरानघे ।
ऋषीणां श्रोतुकामानां योगं सर्वाङ्गनैपुणम् ॥ १४ ॥

श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—इस प्रकार माता देवहूति ने अपनी जो अभिलाषा प्रकट की, वह परम पवित्र और लोगोंका मोक्षमार्गमें अनुराग उत्पन्न करनेवाली थी, उसे सुनकर आत्मज्ञ सत्पुरुषोंकी गति श्रीकपिलजी उसकी मन-ही-मन प्रशंसा करने लगे और फिर मृदु मुसकानसे सुशोभित मुखारविन्दसे इस प्रकार कहने लगे ॥ १२ ॥
भगवान्‌ कपिलने कहा—माता ! यह मेरा निश्चय है कि अध्यात्मयोग ही मनुष्यों के आत्यन्तिक कल्याण का मुख्य साधन है, जहाँ दु:ख और सुख की सर्वथा निवृत्ति हो जाती है ॥१३॥ साध्वि ! सब अङ्गों से सम्पन्न उस योग का मैंने पहले नारदादि ऋषियोंके सामने, उनकी सुननेकी इच्छा होने पर, वर्णन किया था। वही अब मैं आपको सुनाता हूँ ॥ १४ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💟🌷🥀 जय श्रीकृष्ण 🙏
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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