सोमवार, 26 मई 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - पचीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - पचीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)

देवहूति का प्रश्न तथा भगवान्‌ कपिलद्वारा 
भक्तियोग की महिमा का वर्णन

चेतः खल्वस्य बन्धाय मुक्तये चात्मनो मतम् ।
गुणेषु सक्तं बन्धाय रतं वा पुंसि मुक्तये ॥ १५ ॥
अहं ममाभिमानोत्थैः कामलोभादिभिर्मलैः ।
वीतं यदा मनः शुद्धं अदुःखं असुखं समम् ॥ १६ ॥
तदा पुरुष आत्मानं केवलं प्रकृतेः परम् ।
निरन्तरं स्वयंज्योतिः अणिमानं अखण्डितम् ॥ १७ ॥
ज्ञानवैराग्ययुक्तेन भक्तियुक्तेन चात्मना ।
परिपश्यति उदासीनं प्रकृतिं च हतौजसम् ॥ १८ ॥
न युज्यमानया भक्त्या भगवति अखिलात्मनि ।
सदृशोऽस्ति शिवः पन्था योगिनां ब्रह्मसिद्धये ॥ १९ ॥

इस जीव के बन्धन और मोक्ष का कारण मन ही माना गया है । विषयों में आसक्त होने पर वह बन्धन का हेतु होता है और परमात्मा में अनुरक्त होने पर वही मोक्ष का कारण बन जाता है ॥ १५ ॥ जिस समय यह मन मैं और मेरेपन के कारण होनेवाले काम-लोभ आदि विकारोंसे मुक्त एवं शुद्ध हो जाता है, उस समय वह सुख-दु:खसे छूटकर सम अवस्थामें आ जाता है ॥ १६ ॥ तब जीव अपने ज्ञान- वैराग्य और भक्तिसे युक्त हृदयसे आत्माको प्रकृतिसे परे, एकमात्र (अद्वितीय), भेदरहित, स्वयंप्रकाश, सूक्ष्म, अखण्ड और उदासीन (सुख-दु:खशून्य) देखता है तथा प्रकृतिको शक्तिहीन अनुभव करता है ॥ १७-१८ ॥ योगियों के लिये भगवत्प्राप्ति के निमित्त सर्वात्मा श्रीहरि के प्रति की हुई भक्ति के समान और कोई मङ्गलमय मार्ग नहीं है ॥ १९ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🪷💖🌿🪷जय श्रीहरि: !!🙏
    श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
    हरि:शरणम् हरि:शरणम् हरि: शरणम् 🙏 नारायण नारायण नारायण नारायण

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श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - सत्ताईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - सत्ताईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३) प्रकृति-पुरुषके विवेक से मोक्ष-प्राप्ति का वर्णन...