☼ श्रीदुर्गादेव्यै नमो नम: ☼
अथ श्रीदुर्गासप्तशती
अथ देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् (पोस्ट ०१)
अथ देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् (पोस्ट ०१)
न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः |
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ||१||
विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् |
तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ||२||
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः |
मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ||३||
माँ! मैं न मन्त्र जानता हूँ, न यन्त्र;
अहो! मुझे स्तुतिका भी ज्ञान नहीं है। न आवाहनका पता है, न ध्यान का । स्तोत्र और कथा की भी जानकारी नहीं है। न तो
तुम्हारी मुद्राएँ जानता हूँ और न मुझे व्याकुल होकर विलाप करना ही आता है; परंतु एक बात जानता हूँ, केवल तुम्हारा अनुसरण-तुम्हारे पीछे चलना। जो कि सब क्लेशोंको-समस्त
दुःख-विपत्तियोंको हर लेनेवाला है॥१॥
सबका उद्धार करनेवाली कल्याणमयी माता! मैं पूजाकी विधि नहीं
जानता,
मेरे पास धनका भी अभाव है, मैं स्वभावसे भी आलसी हूँ तथा मुझसे ठीक-ठीक पूजाका सम्पादन हो भी नहीं सकता; इन सब कारणोंसे तुम्हारे चरणोंकी सेवामें जो त्रुटि हो गयी
है,
उसे क्षमा करना; क्योंकि कुपुत्र का होना सम्भव है,किंतु कहीं भी कुमाता नहीं होती ॥२॥
माँ! इस पृथ्वीपर तुम्हारे सीधे-सादे पुत्र तो बहुत-से हैं, किंतु उन सबमें मैं
ही अत्यन्त चपल तुम्हारा बालक हूँ; मेरे-जैसा चञ्चल कोई विरला ही होगा।
शिवे! मेरा जो यह त्याग हुआ है, यह तुम्हारे
के लिये कदापि उचित नहीं है, क्योंकि
संसारमें कुपुत्रका होना सम्भव है, किंतु कहीं भी कुमाता नहीं होती ॥३॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से