॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
समुद्रसे अमृतका प्रकट होना और भगवान्
का मोहिनी-अवतार ग्रहण करना
ततश्चाविरभूत्साक्षाच्छ्री रमा भगवत्परा
रञ्जयन्ती दिशः कान्त्या विद्युत्सौदामनी यथा ॥ ८ ॥
तस्यां चक्रुः स्पृहां सर्वे ससुरासुरमानवाः
रूपौदार्यवयोवर्ण महिमाक्षिप्तचेतसः ॥ ९ ॥
तस्या आसनमानिन्ये महेन्द्रो महदद्भुतम्
मूर्तिमत्यः सरिच्छ्रेष्ठा हेमकुम्भैर्जलं शुचि ॥ १० ॥
आभिषेचनिका भूमिराहरत्सकलौषधीः
गावः पञ्च पवित्राणि वसन्तो मधुमाधवौ ॥ ११ ॥
ऋषयः कल्पयां चक्रुराभिषेकं यथाविधि
जगुर्भद्राणि गन्धर्वा नट्यश्च ननृतुर्जगुः ॥ १२ ॥
मेघा मृदङ्गपणव मुरजानकगोमुखान्
व्यनादयन्शङ्खवेणु वीणास्तुमुलनिःस्वनान् ॥ १३ ॥
ततोऽभिषिषिचुर्देवीं श्रियं पद्मकरां सतीम्
दिगिभाः पूर्णकलशैः सूक्तवाक्यैर्द्विजेरितैः ॥ १४ ॥
समुद्रः पीतकौशेय वाससी समुपाहरत्
वरुणः स्रजं वैजयन्तीं मधुना मत्तषट्पदाम् ॥ १५ ॥
भूषणानि विचित्राणि विश्वकर्मा प्रजापतिः
हारं सरस्वती पद्ममजो नागाश्च कुण्डले ॥ १६ ॥
इसके बाद शोभाकी मूर्ति स्वयं भगवती लक्ष्मीदेवी प्रकट
हुर्ईं। वे भगवान् की नित्यशक्ति हैं। उनकी बिजलीके समान चमकीली छटासे दिशाएँ
जगमगा उठीं ॥ ८ ॥ उनके सौन्दर्य, औदार्य, यौवन, रूप-रंग और
महिमासे सबका चित्त खिंच गया। देवता, असुर,
मनुष्य—सभी ने चाहा
कि ये हमें मिल जायँ ॥ ९ ॥ स्वयं इन्द्र अपने हाथों उनके बैठनेके लिये बड़ा
विचित्र आसन ले आये। श्रेष्ठ नदियोंने मूर्तिमान् होकर उनके अभिषेकके लिये सोनेके
घड़ोंमें भर-भरकर पवित्र जल ला दिया ॥ १० ॥ पृथ्वीने अभिषेक के योग्य सब ओषधियाँ
दीं। गौओंने पञ्चगव्य और वसन्त ऋतुने चैत्र-वैशाखमें होनेवाले सब फूल-फल उपस्थित
कर दिये ॥ ११ ॥ इन सामग्रियोंसे ऋषियोंने विधिपूर्वक उनका अभिषेक सम्पन्न किया।
गन्धर्वोंने मङ्गलमय संगीतकी तान छेड़ दी। नर्तकियाँ नाच-नाचकर गाने लगीं ॥ १२ ॥
बादल सदेह होकर मृदङ्ग,
डमरू, ढोल, नगारे, नरसिंगे, शङ्ख, वेणु और वीणा
बड़े जोरसे बजाने लगे ॥ १३ ॥ तब भगवती लक्ष्मीदेवी हाथमें कमल लेकर सिंहासनपर
विराजमान हो गयीं। दिग्गजोंने जलसे भरे कलशोंसे उनको स्नान कराया। उस समय
ब्राह्मणगण वेदमन्त्रोंका पाठ कर रहे थे ॥ १४ ॥ समुद्रने पीले रेशमी वस्त्र उनको
पहननेके लिये दिये। वरुणने ऐसी वैजयन्ती माला समर्पित की, जिसकी मधुमय सुगन्धसे भौरे मतवाले हो रहे थे ॥ १५ ॥
प्रजापति विश्वकर्मा ने भाँति-भाँतिके गहने, सरस्वती ने मोतियोंका हार, ब्रह्माजी ने
कमल और नागों ने दो कुण्डल समर्पित किये ॥ १६ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से