गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –तेईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध तेईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

अनु, द्रुह्यु, तुर्वसु और यदुके वंशका वर्णन

जयध्वजात् तालजंघ तस्य पुत्रशतं त्वभूत् ।
क्षत्रं यत् तालजंघाख्यं और्वतेजोपसंहृतम् ॥ २८ ॥
तेषां ज्येष्ठो वीतिहोत्रो वृष्णिः पुत्रो मधोः स्मृतः ।
तस्य पुत्रशतं त्वासीत् वृष्णिज्येष्ठं यतः कुलम् ॥ २९ ॥
माधवा वृष्णयो राजन् यादवाश्चेति संज्ञिताः ।
यदुपुत्रस्य च क्रोष्टोः पुत्रो वृजिनवांस्ततः ॥ ३० ॥
स्वाहितोऽतो रुशेकुर्वै तस्य चित्ररथस्ततः ।
शशबिन्दुर्महायोगी महाभागो महानभूत् ॥ ३१ ॥
चतुर्दशमहारत्‍नः चक्रवर्ति अपराजितः ।
तस्य पत्‍नीसहस्राणां दशानां सुमहायशाः ॥ ३२ ॥
दशलक्षसहस्राणि पुत्राणां तास्वजीजनत् ।
तेषां तु षट्प्रधानानां पृथुश्रवस आत्मजः ॥ ३३ ॥
धर्मो नामोशना तस्य हयमेधशतस्य याट् ।
तत्सुतो रुचकस्तस्य पञ्चासन्नात्मजाः श्रृणु ॥ ३४ ॥
पुरुजित् रुक्म रुक्मेषु पृथु ज्यामघ संज्ञिताः ।
ज्यामघस्त्वप्रजोऽप्यन्यां भार्यां शैब्यापतिर्भयात् ॥ ३५ ॥
नाविन्दत् शत्रुभवनाद् भोज्यां कन्यामहारषीत् ।
रथस्थां तां निरीक्ष्याह शैब्या पतिममर्षिता ॥ ३६ ॥
केयं कुहक मत्स्थानं रथमारोपितेति वै ।
स्नुषा तवेत्यभिहिते स्मयन्ती पतिमब्रवीत् ॥ ३७ ॥
अहं बन्ध्यासपत्‍नी च स्नुषा मे युज्यते कथम् ।
जनयिष्यसि यं राज्ञि तस्येयमुपयुज्यते ॥ ३८ ॥
अन्वमोदन्त तद्विश्वे देवाः पितर एव च ।
शैब्या गर्भं अधात्काले कुमारं सुषुवे शुभम् ।
स विदर्भ इति प्रोक्त उपयेमे स्नुषां सतीम् ॥ ३९ ॥

जयध्वज के पुत्रका नाम था तालजङ्घ। तालजङ्घके सौ पुत्र हुए। वे तालजङ्घनामक क्षत्रिय कहलाये। महर्षि और्वकी शक्तिसे राजा सगरने उनका संहार कर डाला ॥ २८ ॥ उन सौ पुत्रोंमें सबसे बड़ा था वीतिहोत्र। वीतिहोत्रका पुत्र मधु हुआ। मधुके सौ पुत्र थे। उनमें सबसे बड़ा था वृष्णि ॥ २९ ॥ परीक्षित्‌ ! इन्हीं मधु, वृष्णि और यदुके कारण यह वंश माधव, वार्ष्णेय और यादवके नामसे प्रसिद्ध हुआ। यदुनन्दन क्रोष्टुके पुत्रका नाम था वृजिनवान् ॥३०॥ वृजिनवान्  का पुत्र श्वाहि, श्वाहिका रुशेकु, रुशेकुका चित्ररथ और चित्ररथके पुत्रका नाम था शशबिन्दु। वह परम योगी, महान् भोगैश्वर्यसम्पन्न और अत्यन्त पराक्रमी था ॥ ३१ ॥ वह चौदह रत्नों[*] का स्वामी, चक्रवर्ती और युद्ध में अजेय था। परम यशस्वी शशबिन्दु के दस हजार पत्नियाँ थीं। उनमेंसे एक-एक के लाख-लाख सन्तान हुई थीं। इस प्रकार उसके सौ करोड़एक अरब सन्तानें उत्पन्न हुर्ईं। उनमें पृथुश्रवा आदि छ: पुत्र प्रधान थे। पृथुश्रवाके पुत्रका नाम था धर्म। धर्मका पुत्र उशना हुआ। उसने सौ अश्वमेध यज्ञ किये थे। उशनाका पुत्र हुआ रुचक। रुचकके पाँच पुत्र हुए, उनके नाम सुनो ॥ ३२३४ ॥ पुरुजित्, रुक्म, रुक्मेषु, पृथु और ज्यामघ। ज्यामघकी पत्नीका नाम था शैब्या। ज्यामघके बहुत दिनोंतक कोई सन्तान न हुई। परंतु उसने अपनी पत्नीके भयसे दूसरा विवाह नहीं किया। एक बार वह अपने शत्रुके घरसे भोज्या नामकी कन्या हर लाया। जब शैब्याने पतिके रथपर उस कन्याको देखा, तब वह चिढक़र अपने पतिसे बोली—‘कपटी ! मेरे बैठनेकी जगहपर आज किसे बैठाकर लिये आ रहे हो ?’ ज्यामघ ने कहा—‘यह तो तुम्हारी पुत्रवधू है।शैब्या ने मुसकराकर अपने पतिसे कहा ॥ ३५३७ ॥ मैं तो जन्मसे ही बाँझ हूँ और मेरी कोई सौत भी नहीं है। फिर यह मेरी पुत्रवधू कैसे हो सकती है ?’ ज्यामघने कहा—‘रानी ! तुमको जो पुत्र होगा, उसकी यह पत्नी बनेगी॥ ३८ ॥ राजा ज्यामघके इस वचनका विश्वेदेव और पितरों ने अनुमोदन किया। फिर क्या था, समय पर शैब्या को गर्भ रहा और उसने बड़ा ही सुन्दर बालक उत्पन्न किया। उसका नाम हुआ विदर्भ। उसीने शैब्या की साध्वी पुत्रवधू भोज्या से विवाह किया ॥ ३९ ॥
............................................
[*] चौदह रत्न ये हैहाथी, घोड़ा, रथ, स्त्री, बाण, खजाना, माला, वस्त्र, वृक्ष, शक्ति, पाश, मणि, छत्र और विमान।

इति श्रीमद्‍भागवते महापुराणे पारमहंस्यां
संहितायां नवमस्कन्धे त्रयोविंशोऽध्यायः ॥ २३ ॥

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

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बुधवार, 22 अप्रैल 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –तेईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध तेईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

अनु, द्रुह्यु, तुर्वसु और यदुके वंशका वर्णन

वर्णयामि महापुण्यं सर्वपापहरं नृणाम् ।
यदोर्वंशं नरः श्रुत्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ १९ ॥
यत्रावतीर्णो भगवान् परमात्मा नराकृतिः ।
यदोः सहस्रजित्क्रोष्टा नलो रिपुरिति श्रुताः ॥ २० ॥
चत्वारः सूनवस्तत्र शतजित् प्रथमात्मजः ।
महाहयो रेणुहयो हैहयश्चेति तत्सुताः ॥ २१ ॥
धर्मस्तु हैहयसुतो नेत्रः कुन्तेः पिता ततः ।
सोहञ्जिरभवत् कुन्तेः महिष्मान् भद्रसेनकः ॥ २२ ॥
दुर्मदो भद्रसेनस्य धनकः कृतवीर्यसूः ।
कृताग्निः कृतवर्मा च कृतौजा धनकात्मजाः ॥ ॥
अर्जुनः कृतवीर्यस्य सप्तद्वीपेश्वरोऽभवत् ।
दत्तात्रेयात् हरेरंशात् प्राप्तयोगमहागुणः ॥ २४ ॥
न नूनं कार्तवीर्यस्य गतिं यास्यन्ति पार्थिवाः ।
यज्ञदानतपोयोग श्रुतवीर्यदयादिभिः ॥ २५ ॥
पञ्चाशीति सहस्राणि ह्यव्याहतबलः समाः ।
अनष्टवित्तस्मरणो बुभुजेऽक्षय्यषड्वसु ॥ २६ ॥
तस्य पुत्रसहस्रेषु पञ्चैवोर्वरिता मृधे ।
जयध्वजः शूरसेनो वृषभो मधुरूर्जितः ॥ २७ ॥

परीक्षित्‌ ! महाराज यदुका वंश परम पवित्र और मनुष्योंके समस्त पापोंको नष्ट करनेवाला है। जो मनुष्य इसका श्रवण करेगा, वह समस्त पापोंसे मुक्त हो जायगा ॥ १९ ॥ इस वंशमें स्वयं भगवान्‌ परब्रह्म श्रीकृष्णने मनुष्यके-से रूपमें अवतार लिया था। यदुके चार पुत्र थेसहस्रजित्, क्रोष्टा, नल और रिपु। सहस्रजित्से शतजित्का जन्म हुआ। शतजित् के तीन पुत्र थेमहाहय, वेणुहय और हैहय ॥ २०-२१ ॥ हैहयका धर्म, धर्मका नेत्र, नेत्रका कुन्ति, कुन्तिका सोहंजि, सोहंजिका महिष्मान् और महिष्मान्का पुत्र भद्रसेन हुआ ॥ २२ ॥ भद्रसेनके दो पुत्र थेदुर्मद और धनक। धनकके चार पुत्र हुएकृतवीर्य, कृताग्रि, कृतवर्मा और कृतौजा ॥ २३ ॥ कृतवीर्य का पुत्र अर्जुन था। वह सातों द्वीप का एकच्छत्र सम्राट् था। उसने भगवान्‌ के अंशावतार श्रीदत्तात्रेय जी से योगविद्या और अणिमा-लघिमा आदि बड़ी-बड़ी सिद्धियाँ प्राप्त की थीं ॥ २४ ॥ इसमें सन्देह नहीं कि संसारका कोई भी सम्राट् यज्ञ, दान, तपस्या, योग, शास्त्रज्ञान, पराक्रम और विजय आदि गुणोंमें कार्तवीर्य अर्जुनकी बराबरी नहीं कर सकेगा ॥ २५ ॥ सहस्रबाहु अर्जुन पचासी हजार वर्षतक छहों इन्द्रियोंसे अक्षय विषयोंका भोग करता रहा। इस बीचमें न तो उसके शरीरका बल ही क्षीण हुआ और न तो कभी उसने यही स्मरण किया कि मेरे धनका नाश हो जायगा। उसके धनके नाशकी तो बात ही क्या है, उसका ऐसा प्रभाव था कि उसके स्मरणसे दूसरोंका खोया हुआ धन भी मिल जाता था ॥ २६ ॥ उसके हजारों पुत्रोंमेंसे केवल पाँच ही जीवित रहे। शेष सब परशुरामजीकी क्रोधाग्निमें भस्म हो गये। बचे हुए पुत्रोंके नाम थेजयध्वज, शूरसेन, वृषभ, मधु और ऊर्जित ॥ २७ ॥

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श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –तेईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध तेईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

अनु, द्रुह्यु, तुर्वसु और यदुके वंशका वर्णन

श्रीशुक उवाच ।
अनोः सभानरश्चक्षुः परोक्षश्च त्रयः सुताः ।
सभानरात् कालनरः सृञ्जयः तत्सुतस्ततः ॥ १ ॥
जनमेजयः तस्य पुत्रो महाशालो महामनाः ।
उशीनरः तितिक्षुश्च महामनस आत्मजौ ॥ २ ॥
शिबिर्वनः शमिर्दक्षः चत्वार् उशीनरात्मजाः ।
वृषादर्भः सुधीरश्च मद्रः केकय आत्मवान् ॥ ३ ॥
शिबेश्चत्वार एवासन् तितिक्षोश्च रुशद्रथः ।
ततो होमोऽथ सुतपा बलिः सुतपसोऽभवत् ॥ ४ ॥
अंगवंगकलिंगाद्याः सुह्मपुण्ड्रान्ध्रसंज्ञिताः ।
जज्ञिरे दीर्घतमसो बलेः क्षेत्रे महीक्षितः ॥ ५ ॥
चक्रुः स्वनाम्ना विषयान् षडिमान् प्राच्यकांश्च ते ।
खनपानोऽङ्‌गतो जज्ञे तस्माद् दिविरथस्ततः ॥ ६ ॥
सुतो धर्मरथो यस्य जज्ञे चित्ररथोऽप्रजाः ।
रोमपाद इति ख्यातः तस्मै दशरथः सखा ॥ ७ ॥
शान्तां स्वकन्यां प्रायच्छद् ऋष्यशृङ्‌ग उवाह याम् ।
देवेऽवर्षति यं रामा आनिन्युर्हरिणीसुतम् ॥ ८ ॥
नाट्यसंगीतवादित्रैः विभ्रमालिंंगनार्हणैः ।
स तु राज्ञोऽनपत्यस्य निरूप्येष्टिं मरुत्वतः ॥ ९ ॥
प्रजामदाद् दशरथो येन लेभेऽप्रजाः प्रजाः ।
चतुरंगो रोमपादात् पृथुलाक्षस्तु तत्सुतः ॥ १० ॥
बृहद्रथो बृहत्कर्मा बृहद्‍भानुश्च तत्सुताः ।
आद्याद् बृहन्मनास्तस्मात् जयद्रथ उदाहृतः ॥ ११ ॥
विजयस्तस्य संभूत्यां ततो धृतिरजायत ।
ततो धृतव्रतस्तस्य सत्कर्माधिरथस्ततः ॥ १२ ॥
योऽसौ गंगातटे क्रीडन् मञ्जूषान्तर्गतं शिशुम् ।
कुन्त्यापविद्धं कानीनं अनपत्योऽकरोत्सुतम् ॥ १३ ॥
वृषसेनः सुतस्तस्य कर्णस्य जगतीपते ।
द्रुह्योश्च तनयो बभ्रुः सेतुः तस्यात्मजस्ततः ॥ १४ ॥
आरब्धस्तस्य गान्धारः तस्य धर्मस्ततो धृतः ।
धृतस्य दुर्मदस्तस्मात् प्रचेताः प्राचेतसः शतम् ॥ १५ ॥
म्लेच्छाधिपतयोऽभूवन् उदीचीं दिशमाश्रिताः ।
तुर्वसोश्च सुतो वह्निः वह्नेर्भर्गोऽथ भानुमान् ॥ १६ ॥
त्रिभानुस्तत्सुतोऽस्यापि करन्धम उदारधीः ।
मरुतस्तत्सुतोऽपुत्रः पुत्रं पौरवमन्वभूत् ॥ १७ ॥
दुष्मन्तः स पुनर्भेजे स्व वंशं राज्यकामुकः ।
ययातेर्ज्येष्ठपुत्रस्य यदोर्वंशं नरर्षभ ॥ १८ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! ययातिनन्दन अनु के तीन पुत्र हुएसभानर, चक्षु और परोक्ष। सभानरका कालनर, कालनरका सृञ्जय, सृञ्जयका जनमेजय, जनमेजयका महाशील, महाशीलका पुत्र हुआ महामना। महामनाके दो पुत्र हुएउशीनर एवं तितिक्षु ॥ १-२ ॥ उशीनरके चार पुत्र थेशिबि, वन, शमी और दक्ष। शिबिके चार पुत्र हुएबृषादर्भ, सुवीर, मद्र और कैकेय। उशीनरके भाई तितिक्षुके रुशद्रथ, रुशद्रथके हेम, हेमके सुतपा और सुतपाके बलि नामक पुत्र हुआ ॥ ३-४ ॥ राजा बलिकी पत्नीके गर्भसे दीर्घतमा मुनिने छ: पुत्र उत्पन्न कियेअङ्ग, वङ्ग, कलिङ्ग, सुह्म, पुण्ंड्र और अन्ध्र ॥ ५ ॥ इन लोगोंने अपने-अपने नामसे पूर्व दिशामें छ: देश बसाये। अङ्गका पुत्र हुआ खनपान, खनपानका दिविरथ, दिविरथका धर्मरथ और धर्मरथका चित्ररथ। यह चित्ररथ ही रोमपादके नामसे प्रसिद्ध था। इसके मित्र थे अयोध्याधिपति महाराज दशरथ। रोमपादको कोई सन्तान न थी। इसलिये दशरथने उन्हें अपनी शान्ता नामकी कन्या गोद दे दी। शान्ताका विवाह ऋष्यशृङ्ग मुनिसे हुआ ऋष्यशृङ्ग विभाण्डक ऋषिके द्वारा हरिणीके गर्भसे उत्पन्न हुए थे। एक बार राजा रोमपादके राज्यमें बहुत दिनोंतक वर्षा नहीं हुई। तब गणिकाएँ अपने नृत्य, संगीत, वाद्य, हाव-भाव, आलिङ्गन और विविध उपहारोंसे मोहित करके ऋष्यशृङ्गको वहाँ ले आयीं। उनके आते ही वर्षा हो गयी। उन्होंने ही इन्द्र देवताका यज्ञ कराया, तब सन्तानहीन राजा रोमपादको भी पुत्र हुआ और पुत्रहीन दशरथने भी उन्हींके प्रयत्नसे चार पुत्र प्राप्त किये। रोमपादका पुत्र हुआ चतुरङ्ग और चतुरङ्गका पृथुलाक्ष ॥ ६१० ॥ पृथुलाक्षके बृहद्रथ, बृहत्कर्मा और बृहद्भानुतीन पुत्र हुए। बृहद्रथका पुत्र हुआ बृहन्मना और बृहन्मनाका जयद्रथ ॥ ११ ॥ जयद्रथकी पत्नीका नाम था सम्भूति। उसके गर्भसे विजयका जन्म हुआ। विजयका धृति, धृतिका धृतव्रत, धृतव्रतका सत्कर्मा और सत्कर्माका पुत्र था अधिरथ ॥ १२ ॥ अधिरथको कोई सन्तान न थी। किसी दिन वह गङ्गातटपर क्रीडा कर रहा था कि देखा एक पिटारीमें नन्हा-सा शिशु बहा चला जा रहा है। वह बालक कर्ण था, जिसे कुन्तीने कन्यावस्थामें उत्पन्न होनेके कारण उस प्रकार बहा दिया था। अधिरथने उसीको अपना पुत्र बना लिया ॥ १३ ॥ परीक्षित्‌ ! राजा कर्णके पुत्रका नाम था बृषसेन। ययातिके पुत्र द्रुह्युसे बभ्रुका जन्म हुआ। बभ्रुका सेतु, सेतुका आरब्ध, आरब्धका गान्धार, गान्धारका धर्म, धर्मका धृत, धृतका दुर्मना और दुर्मनाका पुत्र प्रचेता हुआ। प्रचेताके सौ पुत्र हुए, ये उत्तर दिशामें म्लेच्छोंके राजा हुए। ययातिके पुत्र तुर्वसुका वह्नि, वह्नि का भर्ग, भर्गका भानुमान्, भानुमान् का त्रिभानु, त्रिभानुका उदारबुद्धि करन्धम और करन्धमका पुत्र हुआ मरुत। मरुत सन्तानहीन था। इसलिये उसने पूरुवंशी दुष्यन्तको अपना पुत्र बनाकर रखा था ॥ १४१७ ॥ परंतु दुष्यन्त राज्यकी कामनासे अपने ही वंशमें लौट गये। परीक्षित्‌ ! अब मैं राजा ययातिके बड़े पुत्र यदुके वंशका वर्णन करता हूँ ॥ १८ ॥

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मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –बाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध बाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)

पाञ्चाल, कौरव और मगधदेशीय राजाओं के वंश का वर्णन

तवेमे तनयास्तात जनमेजयपूर्वकाः ।
श्रुतसेनो भीमसेन उग्रसेनश्च वीर्यवान् ॥ ३५ ॥
जनमेजयस्त्वां विदित्वा तक्षकान्निधनं गतम् ।
सर्पान् वै सर्पयागाग्नौ स होष्यति रुषान्वितः ॥ ३६ ॥
कावषेयं पुरोधाय तुरं तुरगमेधयाट् ।
समन्तात् पृथिवीं सर्वां जित्वा यक्ष्यति चाध्वरैः ॥ ३७ ॥
तस्य पुत्रः शतानीको याज्ञवल्क्यात् त्रयीं पठन् ।
अस्त्रज्ञानं क्रियाज्ञानं शौनकात् परमेष्यति ॥ ३८ ॥
सहस्रानीकस्तत्पुत्रः ततश्चैवाश्वमेधजः ।
असीमकृष्णस्तस्यापि नेमिचक्रस्तु तत्सुतः ॥ ३९ ॥
गजाह्वये हृते नद्या कौशाम्ब्यां साधु वत्स्यति ।
उक्तस्ततश्चित्ररथः तस्मात् कविरथः सुतः ॥ ४० ॥
तस्माच्च वृष्टिमांस्तस्य सुषेणोऽथ महीपतिः ।
सुनीथस्तस्य भविता नृचक्षुर्यत् सुखीनलः ॥ ४१ ॥
परिप्लवः सुतस्तस्मात् मेधावी सुनयात्मजः ।
नृपञ्जयस्ततो दूर्वः तिमिः तस्मात् जनिष्यति ॥ ४२ ॥
तिमेर्बृहद्रथः तस्मात् शतानीकः सुदासजः ।
शतानीकाद् दुर्दमनः तस्यापत्यं बहीनरः ॥ ४३ ॥
दण्डपाणिर्निमिस्तस्य क्षेमको भविता यतः ।
ब्रह्मक्षत्रस्य वै प्रोक्तो वंशो देवर्षिसत्कृतः ॥ ४४ ॥
क्षेमकं प्राप्य राजानं संस्थां प्राप्स्यति वै कलौ ।
अथ मागधराजानो भवितारो ये वदामि ते ॥ ४५ ॥
भविता सहदेवस्य मार्जारिर्यत् श्रुतश्रवाः ।
ततो युतायुः तस्यापि निरमित्रोऽथ तत्सुतः ॥ ४६ ॥
सुनक्षत्रः सुनक्षत्राद् बृहत्सेनोऽथ कर्मजित् ।
ततः सुतञ्जयाद् विप्रः शुचिस्तस्य भविष्यति ॥ ४७ ॥
क्षेमोऽथ सुव्रतस्तस्माद् धर्मसूत्रः शमस्ततः ।
द्युमत्सेनोऽथ सुमतिः सुबलो जनिता ततः ॥ ४८ ॥
सुनीथः सत्यजिदथ विश्वजित् यद् रिपुञ्जयः ।
बार्हद्रथाश्च भूपाला भाव्याः साहस्रवत्सरम् ॥ ४९ ॥

परीक्षित्‌ ! तुम्हारे पुत्र तो सामने ही बैठे हुए हैंइनके नाम हैंजनमेजय, श्रुतसेन, भीमसेन और उग्रसेन। ये सब-के-सब बड़े पराक्रमी हैं ॥ ३५ ॥ जब तक्षक के काटने से तुम्हारी मृत्यु हो जायगी, तब इस बातको जानकर जनमेजय बहुत क्रोधित होगा और यह सर्प-यज्ञ की आग में सर्पों का हवन करेगा ॥ ३६ ॥ यह कावषेय तुर को पुरोहित बनाकर अश्वमेध यज्ञ करेगा और सब ओरसे सारी पृथ्वीपर विजय प्राप्त करके यज्ञोंके द्वारा भगवान्‌की आराधना करेगा ॥ ३७ ॥ जनमेजयका पुत्र होगा शतानीक। वह याज्ञवल्क्य ऋषिसे तीनों वेद और कर्मकाण्डकी तथा कृपाचार्यसे अस्त्रविद्याकी शिक्षा प्राप्त करेगा एवं शौनकजीसे आत्मज्ञानका सम्पादन करके परमात्मा को प्राप्त होगा ॥ ३८ ॥ शतानीक का सहस्रानीक, सहस्रानीकका अश्वमेधज, अश्वमेधज का असीमकृष्ण और असीमकृष्ण का पुत्र होगा नेमिचक्र ॥ ३९ ॥ जब हस्तिनापुर गङ्गाजीमें बह जायगा, तब वह कौशाम्बीपुरीमें सुखपूर्वक निवास करेगा। नेमिचक्रका पुत्र होगा चित्ररथ, चित्ररथका कविरथ, कविरथका वृष्टिमान्, वृष्टिमान् का राजा सुषेण, सुषेणका सुनीथ, सुनीथका नृचक्षु, नृचक्षुका सुखीनल, सुखीनलका परिप्लव, परिप्लवका सुनय, सुनयका मेधावी, मेधावीका नृपञ्जय, नृपञ्जयका दूर्व और दूर्वका पुत्र तिमि होगा ॥ ४०४२ ॥ तिमिसे बृहद्रथ, बृहद्रथसे सुदास, सुदाससे शतानीक, शतानीकसे दुर्दमन, दुर्दमनसे वहीनर, वहीनरसे दण्डपाणि, दण्डपाणिसे निमि और निमिसे राजा क्षेमकका जन्म होगा। इस प्रकार मैंने तुम्हें ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनोंके उत्पत्तिस्थान सोमवंशका वर्णन सुनाया। बड़े-बड़े देवता और ऋषि इस वंशका सत्कार करते हैं ॥ ४३-४४ ॥ यह वंश कलियुगमें राजा क्षेमकके साथ ही समाप्त हो जायगा। अब मैं भविष्यमें होनेवाले मगध देशके राजाओंका वर्णन सुनाता हूँ ॥ ४५ ॥
जरासन्धके पुत्र सहदेवसे मार्जारि, मार्जारिसे श्रुतश्रवा, श्रुतश्रवासे अयुतायु और अयुतायुसे निरमित्र नामक पुत्र होगा ॥ ४६ ॥ निरमित्रके सुनक्षत्र, सुनक्षत्रके बृहत्सेन, बृहत्सेनके कर्मजित्, कर्मजित्के सृतञ्जय, सृतञ्जयके विप्र और विप्रके पुत्रका नाम होगा शुचि ॥ ४७ ॥ शुचिसे क्षेम, क्षेमसे सुव्रत, सुव्रतसे धर्मसूत्र, धर्मसूत्रसे शम, शमसे द्युमत्सेन, द्युमत्सेनसे सुमति और सुमतिसे सुबलका जन्म होगा ॥ ४८ ॥ सुबलका सुनीथ, सुनीथका, सत्यजित् सत्यजित्का विश्वजित् और विश्वजित् का पुत्र रिपुञ्जय होगा। ये सब बृहद्रथवंशके राजा होंगे। इनका शासनकाल एक हजार वर्षके भीतर ही होगा ॥ ४९ ॥

इति श्रीमद्‍भागवते महापुराणे पारमहंस्यां
संहितायां नवमस्कन्धे द्वाविंशोऽध्यायः ॥ २२ ॥

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

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श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट११)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट११) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन पान...