|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
ईश्वर का ज्ञान और उनमें भक्ति का परम साधन – ये दो पदार्थ किसी प्राणी को प्राप्त हो गए तो कौन- सा पदार्थ रह गया, जिसके लिए मनुष्य कामना करे और ये दोनों पदार्थ श्रीमद्भागवत से पूरी मात्रा में प्राप्त होते हैं | इसीलिए यह ग्रन्थ मनुष्यमात्र का उपकारी है | जब तक मनुष्य भागवत को पढ़े नहीं और उसकी इसमें श्रद्धा न हो, तब तक वह समझ नहीं सकता कि ज्ञान-भक्ति-वैराग्य का यह कितना विशाल समुद्र है | भागवत के पढ़ने से उसको यह विमल ज्ञान हो जाता है कि एक ही परमात्मा प्राणी-प्राणी में बैठा हुआ है और जब उसको यह ज्ञान हो जाता है, तब वह अधर्म करने का मन नहीं करता; क्योंकि दूसरों को चोट पहुंचाना अपने को चोट पहुंचाने के समान हो जाता है | इसका ज्ञान हो जाने से मनुष्य सत्य धर्म में स्थिर हो जाता है, स्वभाव ही से दया-धर्म का पालन करने लगता है और किसी अहिंसक प्राणी के ऊपर वार करने की इच्छा नहीं करता | मनुष्यों में परस्पर प्रेम और प्राणिमात्र के प्रति दया का भाव स्थापित करने के लिए इससे बढ़कर कोई साधन नहीं |
वर्तमान समय में,जब संसार के बहुत अधिक भागों में भयंकर युद्ध छिड़ा हुआ है, मनुष्यमात्र को इस पवित्र धर्म का उपदेश अत्यन्त कल्याणकारी होगा | जो भगवद्भक्त हैं और श्रीमद्भागवत के महत्त्व को जानते हैं, उनका यह कर्त्तव्य है कि मनुष्य के लोक और परलोक दोनों के बनाने वाले इस पवित्र ग्रन्थ का सब देशों की भाषाओं में अनुवाद कर इसका प्रचार करें |