|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||
जब
लग गज अपनो बल बरत्यो नेक सरयो नहीं काम ।
निरबल
ह्वै बलराम पुकार्यो
आयो आधे नाम ॥
जैसे,
गजराजने
पूरा नाम भी उच्चारण नहीं किया, उसने केवल ‘हे
ना......(थ)’
आधा
नाम लेकर पुकारा । उतनेमें भगवान्ने आकर रक्षा कर दी । शास्त्रीय विधियोंकी उतनी
आवश्यकता नहीं है, जितनी इस तरह आर्त होकर पुकारनेकी है
। इसलिये आर्त होकर, दुःखी होकर, भगवान्को
अपना मानकर पुकारें और केवल उनका ही भरोसा, उनकी
ही आशा,
उनका
ही विश्वास रखें और सब तरफसे मन हटाकर उनका ही नाम लें और उनको ही पुकारें‒हे
राम ! राम !! राम !!! आर्तका भाव तेज होता है, इससे
भगवान् उसकी तरफ खिंच जाते हैं और उसके सामने प्रकट हो जाते हैं । तभी तो भगवान्
प्रह्लादके लिये खम्भेमेंसे प्रकट हो गये । भीतरका जो आर्तभाव होता है,
वही
मुख्य होता है । ‘राम’ नाम
उच्चारण करनेकी बड़ी भारी महिमा है । उस ‘राम’
नामका
प्रकरण रामचरितमानसमें बड़े विलक्षण ढंगसे आया है ।
नाम-वन्दना
हेतु
कृसानु भानु हिमकर को ॥
…………(मानस,
बालकाण्ड,
दोहा
१९ । १)
नामकी वन्दना
करते हुए श्रीगोस्वामीजी महाराज कहते हैं कि मैं रघुवंशमें श्रेष्ठ श्रीरघुनाथजीके
उस ‘राम’
नामकी
वन्दना करता हूँ, जो कृसानु (अग्नि),
भानु
(सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा) का हेतु अर्थात् बीज है । बीजमें क्या होता है ?बीजमें
सब गुण होते हैं । वृक्षके फलमें जो रस होता है, वह
सब रस बीजमें ही होता है । बीजसे ही सारे वृक्षको तथा फलोंको रस मिलता है ।
अग्निवंशमें परशुरामजी, सूर्यवंशमें
रामजी और चन्द्रवंशमें बलरामजी‒इस प्रकार
तीनों वंशोंमें ही भगवान्ने अवतार लिये । ये तीनों अवतार ‘राम’
नामवाले
हैं,
पर
श्रीरघुनाथजी महाराजका जो ‘राम’
नाम
है,
वह
इन सबका कारण है । मैं रघुनाथजी महाराजके उसी ‘राम’
नामकी
वन्दना करता हूँ, जो अग्निका बीज ‘र’,सूर्यका
बीज ‘आ’
और
चन्द्रमाका बीज ‘म’ है ।
‘राम’
नाममें
‘र’,
‘आ’
और
‘म’‒ये
तीन अवयव हैं । इन अवयवोंका वर्णन करनेके लिये कृसानु, भानु
और हिमकर‒ये
तीन शब्द दिये हैं ।
यहाँ ये
तीनों शब्द बड़े विचित्र एवं विलक्षण रीतिसे दिये गये हैं । कृसानुमें‘ऋ’,
भानुमें
‘आ’
और
हिमकर में ‘म’
है
। ‘कृसानु’
शब्दमेंसे
‘ऋ’
को
निकाल दें तो‘क्सानु’
शब्द
बचेगा,
जिसका
कोई अर्थ नहीं होगा । ‘भानु’
शब्दमेंसे
‘आ’
निकाल
दें तो ‘भ्नु’
का
भी कोई अर्थ नहीं होगा । ऐसे ही ‘हिमकर’
शब्दमेंसे
‘म’
को
निकाल दें तो ‘हिकर’
का
भी कोई अर्थ नहीं निकलेगा; अर्थात्
कृसानु भानु और हिमकर‒ये तीनों मुर्देकी तरह हो जायँगे;
क्योंकि
इनमेंसे ‘राम’
ही
निकल गया । इनके साथ‘राम’ नाम
रहनेसे कृसानुमें ‘कृ’ का
अर्थ करना,
‘सानु’
का
अर्थ शिखर है,
ऐसे
ही‘भानु’
में
‘भा’
नाम
प्रकाशका है,
‘नु’
नाम
निश्चयका है और ‘हिमकर’ में ‘हिम’नाम
बर्फका है और ‘कर’
नाम
हाथका है ।
राम
! राम !! राम !!!
(शेष
आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर
द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय
स्वामी रामसुखदास जी की “मानस में
नाम-वन्दना” पुस्तकसे