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गुरुवार, 5 अक्तूबर 2023
मानस में नाम-वन्दना (पोस्ट.. 05)
गीता प्रबोधनी पहला अध्याय (पोस्ट.०८)
गीता प्रबोधनी पहला अध्याय (पोस्ट.०७)
बुधवार, 4 अक्तूबर 2023
मानस में नाम-वन्दना (पोस्ट.. 04)
गीता प्रबोधनी पहला अध्याय (पोस्ट.०६)
गीता प्रबोधनी पहला अध्याय (पोस्ट.०५)
गीता प्रबोधनी पहला अध्याय (पोस्ट.०४)
मंगलवार, 3 अक्तूबर 2023
गीता प्रबोधनी पहला अध्याय (पोस्ट.०३)
मानस में नाम-वन्दना (पोस्ट.. 03)
|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||
जब
लग गज अपनो बल बरत्यो नेक सरयो नहीं काम ।
निरबल
ह्वै बलराम पुकार्यो
आयो आधे नाम ॥
जैसे,
गजराजने
पूरा नाम भी उच्चारण नहीं किया, उसने केवल ‘हे
ना......(थ)’
आधा
नाम लेकर पुकारा । उतनेमें भगवान्ने आकर रक्षा कर दी । शास्त्रीय विधियोंकी उतनी
आवश्यकता नहीं है, जितनी इस तरह आर्त होकर पुकारनेकी है
। इसलिये आर्त होकर, दुःखी होकर, भगवान्को
अपना मानकर पुकारें और केवल उनका ही भरोसा, उनकी
ही आशा,
उनका
ही विश्वास रखें और सब तरफसे मन हटाकर उनका ही नाम लें और उनको ही पुकारें‒हे
राम ! राम !! राम !!! आर्तका भाव तेज होता है, इससे
भगवान् उसकी तरफ खिंच जाते हैं और उसके सामने प्रकट हो जाते हैं । तभी तो भगवान्
प्रह्लादके लिये खम्भेमेंसे प्रकट हो गये । भीतरका जो आर्तभाव होता है,
वही
मुख्य होता है । ‘राम’ नाम
उच्चारण करनेकी बड़ी भारी महिमा है । उस ‘राम’
नामका
प्रकरण रामचरितमानसमें बड़े विलक्षण ढंगसे आया है ।
नाम-वन्दना
हेतु
कृसानु भानु हिमकर को ॥
…………(मानस,
बालकाण्ड,
दोहा
१९ । १)
नामकी वन्दना
करते हुए श्रीगोस्वामीजी महाराज कहते हैं कि मैं रघुवंशमें श्रेष्ठ श्रीरघुनाथजीके
उस ‘राम’
नामकी
वन्दना करता हूँ, जो कृसानु (अग्नि),
भानु
(सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा) का हेतु अर्थात् बीज है । बीजमें क्या होता है ?बीजमें
सब गुण होते हैं । वृक्षके फलमें जो रस होता है, वह
सब रस बीजमें ही होता है । बीजसे ही सारे वृक्षको तथा फलोंको रस मिलता है ।
अग्निवंशमें परशुरामजी, सूर्यवंशमें
रामजी और चन्द्रवंशमें बलरामजी‒इस प्रकार
तीनों वंशोंमें ही भगवान्ने अवतार लिये । ये तीनों अवतार ‘राम’
नामवाले
हैं,
पर
श्रीरघुनाथजी महाराजका जो ‘राम’
नाम
है,
वह
इन सबका कारण है । मैं रघुनाथजी महाराजके उसी ‘राम’
नामकी
वन्दना करता हूँ, जो अग्निका बीज ‘र’,सूर्यका
बीज ‘आ’
और
चन्द्रमाका बीज ‘म’ है ।
‘राम’
नाममें
‘र’,
‘आ’
और
‘म’‒ये
तीन अवयव हैं । इन अवयवोंका वर्णन करनेके लिये कृसानु, भानु
और हिमकर‒ये
तीन शब्द दिये हैं ।
यहाँ ये
तीनों शब्द बड़े विचित्र एवं विलक्षण रीतिसे दिये गये हैं । कृसानुमें‘ऋ’,
भानुमें
‘आ’
और
हिमकर में ‘म’
है
। ‘कृसानु’
शब्दमेंसे
‘ऋ’
को
निकाल दें तो‘क्सानु’
शब्द
बचेगा,
जिसका
कोई अर्थ नहीं होगा । ‘भानु’
शब्दमेंसे
‘आ’
निकाल
दें तो ‘भ्नु’
का
भी कोई अर्थ नहीं होगा । ऐसे ही ‘हिमकर’
शब्दमेंसे
‘म’
को
निकाल दें तो ‘हिकर’
का
भी कोई अर्थ नहीं निकलेगा; अर्थात्
कृसानु भानु और हिमकर‒ये तीनों मुर्देकी तरह हो जायँगे;
क्योंकि
इनमेंसे ‘राम’
ही
निकल गया । इनके साथ‘राम’ नाम
रहनेसे कृसानुमें ‘कृ’ का
अर्थ करना,
‘सानु’
का
अर्थ शिखर है,
ऐसे
ही‘भानु’
में
‘भा’
नाम
प्रकाशका है,
‘नु’
नाम
निश्चयका है और ‘हिमकर’ में ‘हिम’नाम
बर्फका है और ‘कर’
नाम
हाथका है ।
राम
! राम !! राम !!!
(शेष
आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर
द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय
स्वामी रामसुखदास जी की “मानस में
नाम-वन्दना” पुस्तकसे
गीता प्रबोधनी पहला अध्याय (पोस्ट.०२)
॥ ॐ
श्रीपरमात्मने नम:॥
सञ्जय
उवाच
दृष्ट्वा
तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा।
आचार्यमुपसङ्गम्य
राजा वचनमब्रवीत्॥ २॥
पश्यैतां
पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
व्यूढां
द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता॥ ३॥
अत्र
शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो
विराटश्च द्रुपदश्च महारथ:॥ ४॥
धृष्टकेतुश्चेकितान:
काशिराजश्च वीर्यवान्।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च
शैब्यश्च नरपुङ्गव:॥ ५॥
युधामन्युश्च
विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।
सौभद्रो
द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथा:॥ ६॥
अस्माकं
तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।
नायका
मम सैन्यस्य सञ्ज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते॥ ७॥
भवान्भीष्मश्च
कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जय:।
अश्वत्थामा
विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च॥ ८॥
अन्ये
च बहव: शूरा मदर्थे त्यक्तजीविता:।
नानाशस्त्रप्रहरणा:
सर्वे युद्धविशारदा:॥ ९॥
ॐ
तत्सत् !
शेष
आगामी पोस्ट में .........
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक “गीता प्रबोधनी”
(कोड १५६२ से)
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