॥ श्रीराधाकृष्णाभ्यां
नमः ॥
गर्गसंहिता-माहात्म्य
चौथा अध्याय
शाण्डिल्य मुनि का
राजा प्रतिबाहु को गर्गसंहिता सुनाना; श्रीकृष्ण का प्रकट होकर राजा आदि को वरदान देना; राजा को पुत्र की प्राप्ति और संहिता का माहात्म्य
महादेवजी बोले- प्रिये ! मुनीश्वर शाण्डिल्यका यह कथन
सुनकर राजाको बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने विनयावनत होकर प्रार्थना की- 'मुने! मैं आपके
शरणागत हूँ। आप शीघ्र ही मुझे श्रीहरिकी कथा सुनाइये और पुत्रवान् बनाइये ॥ १ ॥
राजाकी प्रार्थना सुनकर मुनिवर शाण्डिल्यने श्रीयमुनाजीके
तटपर मण्डपका निर्माण करके सुखदायक कथा पारायणका आयोजन किया। उसे सुनकर सभी मथुरावासी
वहाँ आये। महान् ऐश्वर्य शाली यादवेन्द्र श्रीप्रतिबाहुने कथारम्भ तथा कथा- समाप्तिके
दिन ब्राह्मणोंको उत्तम भोजन कराया तथा बहुत सा धन दान दिया। तत्पश्चात् राजाने मुनिवर
शाण्डिल्यका भलीभाँति पूजन करके उन्हें रथ, अश्व, द्रव्यराशि, गौ, हाथी और ढेर के ढेर
रत्न दक्षिणामें दिये । सर्वमङ्गले ! तब शाण्डिल्यने मेरे द्वारा कहे हुए श्रीमान्
गोपालकृष्णके सहस्रनामका पाठ किया, जो सम्पूर्ण दोषोंको हर लेनेवाला है। कथा समाप्त
होनेपर शाण्डिल्यकी प्रेरणासे राजेन्द्र प्रतिबाहुने भक्तिपूर्वक व्रजेश्वर श्रीमान्
मदनमोहनका ध्यान किया। तब श्रीकृष्ण अपनी प्रेयसी राधा तथा पार्षदोंके साथ वहाँ प्रकट
हो गये। उन साँवरे सलोनेके हाथमें वंशी और बेंत शोभा पा रहे थे। उनकी छटा करोड़ों कामदेवोंको
मोहमें डालनेवाली थी। उन्हें सम्मुख उपस्थित देखकर महर्षि शाण्डिल्य, राजा तथा समस्त
श्रोताओंके साथ तुरंत ही उनके चरणोंमें लुट पड़े और पुनः विधि- पूर्वक स्तुति करने
लगे ।। २७ ।।
शाण्डिल्य बोले- प्रभो! आप वैकुण्ठपुरीमें सदा लीलामें
तत्पर रहनेवाले हैं। आपका स्वरूप परम मनोहर है। देवगण सदा आपको नमस्कार करते हैं। आप
परम श्रेष्ठ हैं। गोपालनकी लीलामें आपकी विशेष अभिरुचि रहती है— ऐसे आपका मैं भजन करता
हूँ। साथ ही आप गोलोकाधिपतिको मैं नमस्कार करता हूँ ॥ ८ ॥
प्रतिबाहु बोले- गोलोकनाथ ! आप गिरिराज गोवर्धनके स्वामी
हैं। परमेश्वर ! आप वृन्दावनके अधीश्वर तथा नित्य विहारकी लीलाएँ करनेवाले हैं राधापते
! व्रजाङ्गनाएँ आपकी कीर्तिका गान करती रहती हैं। गोविन्द ! आप गोकुलके पालक हैं। निश्चय
ही आपकी जय हो ॥ ९ ॥
रानी बोली- राधेश ! आप वृन्दावन के
स्वामी तथा पुरुषोत्तम हैं। माधव ! आप भक्तों को सुख देने वाले
हैं ! मैं आपकी शरण ग्रहण करती हूँ' ॥ १० ॥
समस्त श्रोताओंने कहा – हे जगन्नाथ ! हम लोगोंका अपराध
क्षमा कीजिये ! श्रीनाथ ! राजाको सुपुत्र तथा हमलोगों को अपने
चरणोंकी भक्ति प्रदान कीजिये ॥ ११ ॥
महादेवजीने कहा-देवि ! भक्तवत्सल भगवान् इस प्रकार
अपनी स्तुति सुनकर उन सभी प्रणतजनों के प्रति मेघके समान गम्भीर
वाणीसे बोले ॥ १२ ॥
श्रीभगवान् ने कहा- मुनिवर शाण्डिल्य ! तुम राजा तथा
सभी लोगोंके साथ मेरी बात सुनो- 'तुम- लोगोंका कथन सफल होगा।' ब्रह्मन् ! इस संहिताके
रचयिता गर्गमुनि हैं, इसी कारण यह 'गर्गसंहिता' नामसे प्रसिद्ध है। यह सम्पूर्ण दोषोंको
हरनेवाली, पुण्यस्वरूपा और चतुर्वर्ग-धर्म, अर्थ, काम, मोक्षके फलको देनेवाली है। कलियुगमें
जो-जो मनुष्य जिस- जिस मनोरथकी अभिलाषा करते हैं, श्रीगर्गाचार्यकी यह गर्गसंहिता सभीकी
उन-उन कामनाओंको पूर्ण करती है' ॥ १३ – १५॥
शिवजीने कहा-देवि ! ऐसा कहकर माधव राधाके साथ अन्तर्धान
हो गये। उस समय शाण्डिल्य मुनिको तथा राजा आदि सभी श्रोताओंको परम आनन्द प्राप्त हुआ।
प्रिये ! तदनन्तर मुनिवर शाण्डिल्यने दक्षिणा में प्राप्त हुए धनको मथुरावासी ब्राह्मणोंमें
बाँट दिया। फिर राजाको आश्वासन देकर वे भी अन्तर्हित हो गये ।। १६-१७ ॥
तत्पश्चात् रानीने राजाके समागमसे सुन्दर गर्भ धारण
किया। प्रसवकाल आनेपर पुण्यकर्मके फलस्वरूप गुणवान् पुत्र उत्पन्न हुआ। उस समय राजाको
महान् हर्ष प्राप्त हुआ। उन्होंने कुमारके जन्मके उपलक्षमें ब्राह्मणोंको गौ, पृथ्वी,
सुवर्ण, वस्त्र, हाथी, घोड़े आदि दान दिये और ज्यौतिषियोंसे परामर्श करके अपने पुत्रका
'सुबाहु' नाम रखा। इस प्रकार नृपश्रेष्ठ प्रतिबाहु सफलमनोरथ हो गये। राजा प्रतिबाहुने
श्रीगर्गसंहिताका श्रवण करके इस लोकमें सम्पूर्ण सुखोंका उपभोग किया और अन्तकाल आनेपर
वे गोलोकधामको चले गये, जहाँ पहुँचना योगियोंके लिये भी दुर्लभ है। श्रीगर्गसंहिता
स्त्री, पुत्र, धन, सवारी, कीर्ति, घर, राज्य, सुख और मोक्ष प्रदान करनेवाली है। मुनीश्वरो
! इस प्रकार भगवान् शंकरने पार्वतीदेवीसे सारी कथा कहकर जब विराम लिया, तब पार्वतीने
पुनः उनसे कहा ।। १८–२३ ॥
पार्वतीजी बोलीं- नाथ! जिसमें माधवका अद्भुत चरित्र
सुननेको मिलता है, उस श्रीगर्गसंहिताकी कथा मुझे बतलाइये। यह सुनकर भगवान् शंकरने हर्षपूर्वक
अपनी प्रिया पार्वतीसे गर्गसंहिताकी सारी कथा कह सुनायी। पुनः साक्षात् शंकरने आगे
कहा- 'सर्वमङ्गले! तुम मेरी यह बात सुनो- गङ्गातटसे अर्ध योजन (चार मील) की दूरीपर
बिल्वकेश वनमें जो सिद्धपीठ है, वहाँ कलियुग आनेपर गोकुलवासी वैष्णवोंके मुखसे श्रीमद्भागवत
आदि संहिताओंकी कथा तुम्हें बारंबार सुननेको मिलेगी' ॥ २६-२७ ॥
सूतजी कहते हैं— शौनक ! इस प्रकार महादेवजीके मुखसे
इस महान् अद्भुत इतिहासको सुनकर भगवान्की वैष्णवी माया पार्वती परम प्रसन्न हुईं।
मुने ! उन्होंने बारंबार श्रीहरिकी कथा सुननेकी इच्छासे कलियुगके प्रारम्भमें अपनेको
बिल्वकेश वनमें प्रकट करनेका निश्चय किया। इसी कारण वे लक्ष्मीका रूप धारण करके 'सर्वमङ्गला'
नामसे वहाँ गङ्गाके दक्षिण तटपर प्रकट होंगी। मुने! श्रीगर्ग- संहिताका जो माहात्म्य
मैंने कहा है, इसे जो सुनता है अथवा पढ़ता है, वह पाप और दुःखोंसे मुक्त हो जाता है
। २८ - ३१ ॥
इस प्रकार श्रीसम्मोहन-तन्त्रमें पार्वती-शंकर-संवादमें
'श्रीगर्गसंहिता-माहात्म्यविषयक' चौथा अध्याय पूरा हुआ ॥ ४ ॥
॥ गर्गसंहिता - माहात्म्य सम्पूर्ण ॥
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता
पुस्तक कोड 2260 से