शुक्रवार, 21 जून 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण सप्तम स्कन्ध – पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम स्कन्ध – पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

हिरण्यकशिपु के द्वारा प्रह्लादजी के वध का प्रयत्न

एकदासुरराट्पुत्रमङ्कमारोप्य पाण्डव
पप्रच्छ कथ्यतां वत्स मन्यते साधु यद्भवान् ||||

श्रीप्रह्लाद उवाच
तत्साधु मन्येऽसुरवर्य देहिनां
सदा समुद्विग्नधियामसद्ग्रहात्
हित्वात्मपातं गृहमन्धकूपं
वनं गतो यद्धरिमाश्रयेत ||||

श्रीनारद उवाच
श्रुत्वा पुत्रगिरो दैत्यः परपक्षसमाहिताः
जहास बुद्धिर्बालानां भिद्यते परबुद्धिभिः ||||
सम्यग्विधार्यतां बालो गुरुगेहे द्विजातिभिः
विष्णुपक्षैः प्रतिच्छन्नैर्न भिद्येतास्य धीर्यथा ||||
गृहमानीतमाहूय प्रह्रादं दैत्ययाजकाः
प्रशस्य श्लक्ष्णया वाचा समपृच्छन्त सामभिः ||||
वत्स प्रह्लाद भद्रं ते सत्यं कथय मा मृषा
बालानति कुतस्तुभ्यमेष बुद्धिविपर्ययः ||||
बुद्धिभेदः परकृत उताहो ते स्वतोऽभवत्
भण्यतां श्रोतुकामानां गुरूणां कुलनन्दन ||१०||

युधिष्ठिर ! एक दिन हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र प्रह्लाद को बड़े प्रेमसे गोदमें लेकर पूछा—‘बेटा ! बताओ तो सही, तुम्हें कौन-सी बात अच्छी लगती है ?’ ॥ ४ ॥
प्रह्लादजी ने कहापिताजी ! संसारके प्राणी मैंऔर मेरेके झूठे आग्रहमें पडक़र सदा ही अत्यन्त उद्विग्न रहते हैं। ऐसे प्राणियोंके लिये मैं यही ठीक समझता हूँ कि वे अपने अध:पतन के मूल कारण, घास से ढके हुए अँधेरे कूएँ के समान इस घर को छोडक़र वनमें चले जायँ और भगवान्‌ श्रीहरि की शरण ग्रहण करें ॥ ५ ॥
नारदजी कहते हैंप्रह्लादजी के मुँह से शत्रुपक्ष की प्रशंसा से भरी बात सुनकर हिरण्यकशिपु ठठाकर हँस पड़ा। उसने कहा—‘दूसरोंके बहकाने से बच्चों की बुद्धि यों ही बिगड़ जाया करती है ॥ ६ ॥ जान पड़ता है गुरुजी के घर पर विष्णु के पक्षपाती कुछ ब्राह्मण वेष बदलकर रहते हैं। बालक की भलीभाँति देख-रेख की जाय, जिससे अब इसकी बुद्धि बहकने न पाये ॥ ७ ॥
जब दैत्योंने प्रह्लादको गुरुजीके घर पहुँचा दिया, तब पुरोहितोंने उनको बहुत पुचकारकर और फुसलाकर बड़ी मधुर वाणीसे पूछा ॥ ८ ॥ बेटा प्रह्लाद ! तुम्हारा कल्याण हो। ठीक-ठीक बतलाना। देखो, झूठ न बोलना। यह तुम्हारी बुद्धि उलटी कैसे हो गयी ? और किसी बालककी बुद्धि तो ऐसी नहीं हुई ॥ ९ ॥ कुलनन्दन प्रह्लाद ! बताओ तो बेटा ! हम तुम्हारे गुरुजन यह जानना चाहते हैं कि तुम्हारी बुद्धि स्वयं ऐसी हो गयी या किसी ने सचमुच तुम को बहका दिया है ? ॥ १० ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से





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