शनिवार, 2 नवंबर 2019

“नाहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च | मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद ||”

हम लोगों को भगवान की चर्चा व संकीर्तन अधिक से अधिक करना चाहिए क्योंकि भगवान् वहीं निवास करते हैं जहाँ उनका संकीर्तन होता है | स्वयं भगवान् ने कहा है :-

“नाहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च |
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद ||”

अर्थात् हे नारद ! मैं न तो बैकुंठ में ही रहता हूँ और न योगियों के हृदय में ही रहता हूँ। मैं तो वहीं रहता हूँ, जहाँ प्रेमाकुल होकर मेरे भक्त मेरे नाम का कीर्तन किया करते हैं। मैं सर्वदा लोगों के अन्तःकरण में विद्यमान रहता हूं !
 


8 टिप्‍पणियां:

  1. Very nice explanation. It removes all suspicions about where God resides. The implied preaching makes us conscious of what we should do and what is life meant for.

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  2. 🌺💖🥀जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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