रविवार, 30 जुलाई 2023

नारद गीता तीसरा अध्याय (पोस्ट 04)

 



नारदजी का शुकदेव को कर्मफलप्राप्तिमें  परतन्त्रता- विषयक उपदेश तथा शुकदेवजी का सूर्य- लोक में जाने का निश्चय

 

केषाञ्चित् पुत्रकामानामनुसन्तानमिच्छताम् ।

सिद्धौ प्रयतमानानां न चाण्डमुपजायते॥ १६॥

 

कुछ लोग पुत्र की इच्छा रखते हैं और उस पुत्र के भी सन्तान चाहते हैं तथा इसकी सिद्धि के लिये सब प्रकार से प्रयत्न करते हैं तो भी उनके एक अंडा भी उत्पन्न नहीं होता ॥ १६ ॥

 

गर्भाच्चोद्विजमानानां क्रुद्धादाशीविषादिव ।

आयुष्माञ्जायते पुत्रः कथं प्रेत इवाभवत्॥१७॥

 

बहुत-से मनुष्य बच्चा पैदा होने से उसी तरह डरते हैं, जैसे क्रोध में भरे हुए विषधर सर्प से लोग भयभीत रहते हैं, तथापि उनके यहाँ दीर्घजीवी पुत्र उत्पन्न होता है और क्या मजाल कि वह कभी किसी तरह रोग आदि से मृतकतुल्य हो सके ॥ १७ ॥

 

देवानिष्ट्वा तपस्तप्त्वा कृपणैः पुत्रगृद्धिभिः ।

दश मासान् परिधृता जायन्ते कुलपांसनाः ॥ १८ ॥

 

पुत्र की अभिलाषा रखनेवाले दीन स्त्री-पुरुषोंद्वारा देवताओं की पूजा और तपस्या करके दस मास तक गर्भ धारण किया जाता है, तथापि उनके कुलांगार पुत्र उत्पन्न होते हैं ॥ १८ ॥

 

अपरे धनधान्यानि भोगांश्च पितृसञ्चितान् ।

विपुलानभिजायन्ते लब्धास्तैरेव मङ्गलैः॥१९॥

 

तथा बहुत से ऐसे हैं, जो आमोद-प्रमोदमें ही जन्म धारण करके पिताके सञ्चित किये हुए अपार धनधान्य एवं विपुल भोगोंके अधिकारी होते हैं ॥ १९ ॥

 

अन्योन्यं समभिप्रेत्य मैथुनस्य समागमे ।

उपद्रव इवाविष्टो योनिं गर्भः प्रपद्यते ॥ २० ॥

 

पति-पत्नी की पारस्परिक इच्छा के अनुसार मैथुन के लिये जब उनका समागम होता है, उस समय किसी उपद्रव के समान गर्भ योनि में प्रवेश करता है ॥ २०॥

 

......शेष आगामी पोस्ट में

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से

 



1 टिप्पणी:

  1. 🌸🌿🌷जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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