बुधवार, 11 सितंबर 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-आठवां अध्याय..(पोस्ट०५)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
द्वितीय स्कन्ध- आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

राजा परीक्षित् के विविध प्रश्न 

यथात्मतन्त्रो भगवान् विक्रीडत्यात्ममायया ।
विसृज्य वा यथा मायां उदास्ते साक्षिवद्विभुः ॥ २३ ॥
सर्वमेतच्च भगवन् पृच्छतो मेऽनुपूर्वशः ।
तत्त्वतोऽर्हस्युदाहर्तुं प्रपन्नाय महामुने ॥ २४ ॥
अत्र प्रमाणं हि भवान् परमेष्ठी यथात्मभूः ।
अपरे चानुतिष्ठन्ति पूर्वेषां पूर्वजैः कृतम् ॥ २५ ॥
न मेऽसवः परायन्ति ब्रह्मन् अनशनादमी ।
पिबतोऽच्युतपीयूषं अन्यत्र कुपिताद् द्विजात् ॥ २६ ॥

श्रीसूत उवाच
स उपामन्त्रितो राज्ञा कथायामिति सत्पतेः ।
ब्रह्मरातो भृशं प्रीतो विष्णुरातेन संसदि ॥ २७ ॥
प्राह भागवतं नाम पुराणं ब्रह्मसम्मितम् ।
ब्रह्मणे भगवत्प्रोक्तं ब्रह्मकल्प उपागते ॥ २८ ॥
यद्यत् परीक्षिदृषभः पाण्डूनामनुपृच्छति ।
आनुपूर्व्येण तत्सर्वं आख्यातुमुपचक्रमे ॥ २९ ॥

भगवान्‌ तो परम स्वतन्त्र हैं। वे अपनी मायासे किस प्रकार क्रीड़ा करते हैं और उसे छोडक़र साक्षीके समान उदासीन कैसे हो जाते हैं ? ॥ २३ ॥ भगवन् ! मैं यह सब आपसे पूछ रहा हूँ। मैं आपकी शरणमें हूँ। महामुने ! आप कृपा करके क्रमश: इनका तात्त्विक निरूपण कीजिये ॥ २४ ॥ इस विषयमें आप स्वयम्भू ब्रह्माके समान परम प्रमाण हैं। दूसरे लोग तो अपनी पूर्वपरम्परासे सुनी-सुनायी बातोंका ही अनुष्ठान करते हैं ॥ २५ ॥ ब्रह्मन् आप मेरी भूख-प्यासकी चिन्ता न करें। मेरे प्राण कुपित ब्राह्मणके शाप के अतिरिक्त और किसी कारणसे निकल नहीं सकते; क्योंकि मैं आपके मुखारविन्दसे निकलनेवाली भगवान्‌ की अमृतमयी लीला-कथा का पान कर रहा हूँ ॥ २६ ॥
सूतजी कहते हैं—शौनकादि ऋषियो ! जब राजा परीक्षित्‌ ने संतोंकी सभामें भगवान्‌ की लीलाकथा सुनाने के लिये इस प्रकार प्रार्थना की, तब श्रीशुकदेवजीको बड़ी प्रसन्नता हुई ॥ २७ ॥ उन्होंने उन्हें वही वेदतुल्य श्रीमद्भागवत-महापुराण सुनाया, जो ब्राह्मकल्पके आरम्भमें स्वयं भगवान्‌ ने ब्रह्माजीको सुनाया था ॥ २८ ॥ पाण्डुवंशशिरोमणि परीक्षित्‌ ने उनसे जो-जो प्रश्न किये थे, वे उन सबका उत्तर क्रमश: देने लगे ॥ २९ ॥

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

इति श्रीमद्‌भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
द्वितीयस्कंधे अष्टमोऽध्यायः ॥ ८ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌺💖🌹🥀जय श्रीहरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव:
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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