शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पहला अध्याय..(पोस्ट०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध -पहला अध्याय..(पोस्ट०३)

उद्धव और विदुर की भेंट

अजातशत्रोः प्रतियच्छ दायं
    तितिक्षतो दुर्विषहं तवागः ।
सहानुजो यत्र वृकोदराहिः
    श्वसन् रुषा यत्त्वमलं बिभेषि ॥ ११ ॥
पार्थांस्तु देवो भगवान् मुकुन्दो
    गृहीतवान् स क्षितिदेवदेवः ।
आस्ते स्वपुर्यां यदुदेवदेवो
    विनिर्जिताशेष नृदेवदेवः ॥ १२ ॥
स एष दोषः पुरुषद्विडास्ते
    गृहान् प्रविष्टो यमपत्यमत्या ।
पुष्णासि कृष्णाद्विमुखो गतश्रीः
    त्यजाश्वशैवं कुलकौशलाय ॥ १३ ॥

उन्होंने (विदुरजीने धृतराष्ट्र से) कहा—‘महाराज ! आप अजातशत्रु महात्मा युधिष्ठिरको उनका हिस्सा दे दीजिये। वे आपके न सहनेयोग्य अपराधको भी सह रहे हैं। भीमरूप काले नागसे तो आप भी बहुत डरते हैं; देखिये, वह अपने छोटे भाइयोंके सहित बदला लेनेके लिये बड़े क्रोधसे फुफकारें मार रहा है ॥ ११ ॥ आपको पता नहीं, भगवान्‌ श्रीकृष्णने पाण्डवोंको अपना लिया है। वे यदुवीरों के आराध्यदेव इस समय अपनी राजधानी द्वारकापुरी में विराजमान हैं। उन्होंने पृथ्वीके सभी बड़े-बड़े राजाओंको अपने अधीन कर लिया है तथा ब्राह्मण और देवता भी उन्हींके पक्षमें हैं ॥ १२ ॥ जिसे आप पुत्र मानकर पाल रहे हैं तथा जिसकी हाँ-में-हाँ मिलाते जा रहे हैं, उस दुर्योधनके रूपमें तो मूर्तिमान् दोष ही आपके घरमें घुसा बैठा है। यह तो साक्षात् भगवान्‌ श्रीकृष्णसे द्वेष करनेवाला है। इसीके कारण आप भगवान्‌ श्रीकृष्णसे विमुख होकर श्रीहीन हो रहे हैं। अतएव यदि आप अपने कुलकी कुशल चाहते हैं तो इस दुष्टको तुरंत ही त्याग दीजिये ॥ १३ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. जय गोविंदम् दीनदयालम्
    राधा रमणम् हरे हरे 💟🥀
    जय हो श्रीनाथ जी महाराज
    जय हो मेरे द्वारकानाथ गोविंद
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव !!
    जय श्री राधे कृष्ण 🥀💖🌹🙏🙏🙏🙏

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