॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - छब्बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट१३)
महदादि भिन्न-भिन्न तत्त्वोंकी उत्पत्ति का वर्णन
हस्तौ च निरभिद्येतां बलं ताभ्यां ततः स्वराट् ।
पादौ च निरभिद्येतां गतिस्ताभ्यां ततो हरिः ॥ ५८ ॥
नाड्योऽस्य निरभिद्यन्त ताभ्यो लोहितमाभृतम् ।
नद्यस्ततः समभवन् उदरं निरभिद्यत ॥ ५९ ॥
क्षुत्पिपासे ततः स्यातां समुद्रस्त्वेतयोरभूत् ।
अथास्य हृदयं भिन्नं हृदयान्मन उत्थितम् । ६० ॥
मनसश्चन्द्रमा जातो बुद्धिर्बुद्धेर्गिरां पतिः ।
अहङ्कारस्ततो रुद्रः चित्तं चैत्यस्ततोऽभवत् । ६१ ॥
तदनन्तर (उस विराट् पुरुष के) हाथ प्रकट हुए, उनसे बल और बल के बाद हस्तेन्द्रिय का अभिमानी इन्द्र उत्पन्न हुआ । फिर चरण प्रकट हुए, उनसे गति (गमनकी क्रिया) और फिर पादेन्द्रिय का अभिमानी विष्णुदेवता उत्पन्न हुआ ॥ ५८ ॥ इसी प्रकार जब विराट् पुरुष के नाडियाँ प्रकट हुर्ईं, तो उनसे रुधिर उत्पन्न हुआ और उससे नदियाँ हुर्ईं । फिर उसके उदर (पेट) प्रकट हुआ ॥ ५९ ॥ उससे क्षुधा-पिपासा की अभिव्यक्ति हुई और फिर उदर का अभिमानी समुद्रदेवता उत्पन्न हुआ। तत्पश्चात् उसके हृदय प्रकट हुआ, हृदयसे मनका प्राकट्य हुआ ॥ ६० ॥ मनके बाद उसका अभिमानी देवता चन्द्रमा हुआ। फिर हृदयसे ही बुद्धि और उसके बाद उसका अभिमानी ब्रह्मा हुआ। तत्पश्चात् अहंकार और उसके अनन्तर उसका अभिमानी रुद्रदेवता उत्पन्न हुआ। इसके बाद चित्त और उसका अभिमानी क्षेत्रज्ञ प्रकट हुआ ॥ ६१ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌺💟🌺ॐश्रीपरमात्मने नमः
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
नारायण नारायण नारायण नारायण