||श्री हरि ||
भगवान् शंकराचार्य और विवेक चूडामणि
(पोस्ट.०२)
(पोस्ट.०२)
विद्याध्ययन समाप्त करके शंकर ने संन्यास लेना चाहा, परन्तु जब उन्होंने माता से आज्ञा माँगी तो उन्होंने नाहीं करदी | शंकर माता के बड़े भक्त थे, माता को कष्ट देकर संन्यास नहीं लेना चाहते थे | एक दिन माता के साथ नदी में स्नान करने गए | वहाँ शंकर को मगर ने पकड़ लिया | इस प्रकार पुत्र को संकट में देख माता के होश उड़ गए | वह बेचैन होकर हाहाकार मचाने लगी | शंकर ने माता से कहा –“मुझे संन्यास लेने की आज्ञा दी दो तो मगर मुझे छोड़ देगा” | माता ने तुरंत आज्ञा दे दी और मगर ने शंकर को छोड़ दिया | इस तरह माता की आज्ञा प्राप्त कर वे घर से निकल पड़े | जाते समय माता की इच्छानुसार यह वचन देते गए कि तुम्हारी मृत्यु के समय मैं घर पर उपस्थित रहूँगा |
घर से चल कर शंकर नर्मदा तट पर आये और वहाँ स्वामी गोविन्द भगवत्पाद से दीक्षा ली | गुरु ने उनका नाम ‘भगवत्पूज्यपादाचार्य’ रखा | उन्होंने गुरूपदिष्ट मार्ग से साधना प्रारम्भ कर दी और अल्पकाल में बहुत बड़े योगसिद्ध महात्मा हो गए | उनकी सिद्धि से प्रसन्न होकर गुरु ने काशी जाकर वेदान्त-सूत्र का भाष्य लिखने की आज्ञा दी और वे काशी आगये | काशी आनेपर उनकी ख्याति बढ़ने लगी और लोग आकृष्ट होकर उनका शिष्यत्व भी ग्रहण करने लगे | उनके सर्वप्रथम शिष्य सनन्दन हुए जो पीछे ‘पद्मपादाचार्य’ के नाम से प्रसिद्ध हुए | काशी में शिष्यों को पढाने के साथ-साथ वे ग्रन्थ भी लिखते जाते थे | कहते हैं एक दिन भगवान विश्वनाथ ने उन्हें दर्शन दिया और ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखने और धर्मप्रचार करने का आदेश दिया | वेदान्तसूत्र पर जब वे भाष्य लिख चुके तो एक दिन एक ब्राह्मण ने गंगातट पर उनसे एक सूत्र का अर्थ पूछा | उस सूत्र पर ब्राह्मण के साथ उनका 27 दिनों तक शास्त्रार्थ चलता रहा | पीछे उन्हें मालूम हुआ कि स्वयं भगवान वेदव्यास ब्राह्मण के वेश में प्रकट होकर उनके साथ विवाद कर रहे हैं | तब उन्होंने भक्तिपूर्वक प्रणाम किया और क्षमा माँगी | फिर वेदव्यास ने उन्हें अद्वैतवाद का प्रचार करने की आज्ञा दी और उनकी 16 वर्ष की आयु को 32 वर्ष बढ़ा दिया | इस घटना के बाद शंकराचार्य दिग्विजय के लिए निकल पड़े |
नारायण ! नारायण !!
(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे