||श्री
परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.०७)
अधिकारी निरूपण
अधिकारिणमाशास्ते
फलसिद्धिर्विशेषत: |
उपाया देशकालाद्या: संत्यस्मिन्सहकारिण: ||१४||
उपाया देशकालाद्या: संत्यस्मिन्सहकारिण: ||१४||
(विशेषत:
अधिकारी को ही फल सिद्धि होती है; देश, काल आदि उपाय भी उसमें सहायक अवश्य होते हैं )
अतो विचार:
कर्तव्यो जिज्ञासोरात्मवस्तुन: |
समासाद्य दयासिंधुं गुरुं ब्रह्मविदुत्तमम् || १५||
समासाद्य दयासिंधुं गुरुं ब्रह्मविदुत्तमम् || १५||
(अत:
ब्रह्मवेत्ताओं में श्रेष्ठ दयासागर गुरुदेव की शरण में जाकर जिज्ञासु को
आत्मतत्त्व का विचार करना चाहिए)
मेधावी पुरुषो
विद्वानूहापोहविचक्षण: |
अधिकार्यात्मविद्यायामुक्तलक्षणलक्षित: ||१६||
अधिकार्यात्मविद्यायामुक्तलक्षणलक्षित: ||१६||
(जो
बुद्धिमान हो,विद्वान हो और तर्क-वितर्क में कुशल हो,
ऐसे लक्षणों वाला पुरुष ही आत्मविद्या का अधिकारी होता है)
विवेकिनो
विरक्तस्य शमादिगुणशालिन: |
मुमुक्षोरेव हि ब्रह्मजिज्ञासायोग्यता मता ||१७||
मुमुक्षोरेव हि ब्रह्मजिज्ञासायोग्यता मता ||१७||
(जो
सदसद्विवेकी, वैराग्यवान,शम-दमादि
षट्सम्पत्तियुक्त और मुमुक्षु हो उसी में ब्रह्मजिज्ञासा की योग्यता मानी गयी है)
नारायण !
नारायण !!
शेष आगामी
पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे