☼ श्रीदुर्गादेव्यै
नमो नम: ☼
अथ
श्रीदुर्गासप्तशती
अथ प्राधानिकं रहस्यम् (पोस्ट ०३)
अथ प्राधानिकं रहस्यम् (पोस्ट ०३)
तां प्रोवाच महालक्ष्मीस्तामसीं प्रमदोत्तमाम्।
ददामि
तव नामानि यानि कर्माणि तानि ते॥11॥
महामाया
महाकाली महामारी क्षुधा तृषा।
निद्रा
तृष्णा चैकवीरा कालरात्रिर्दुरत्यया॥12॥
इमानि
तव नामानि प्रतिपाद्यानि कर्मभि:।
एभि:
कर्माणि ते ज्ञात्वा योऽधीते सोऽश्रुते सुखम्॥13॥
तामित्युक्त्वा
महालक्ष्मी: स्वरूपमपरं नृप।
सत्त्वाख्येनातिशुद्धेन
गुणेनेन्दुप्रभं दधौ॥14॥
अक्षमालाङ्कुशधरा
वीणापुस्तकधारिणी।
सा
बभूव वरा नारी नामान्यस्यै च सा ददौ॥15॥
महाविद्या
महावाणी भारती वाक् सरस्वती।
आर्या
ब्राह्मी कामधेनुर्वेदगर्भा च धीश्वरी॥16॥
अथोवाच
महालक्ष्मीर्महाकालीं सरस्वतीम्।
युवां
जनयतां देव्यौ मिथुने स्वानुरूपत:॥17॥
तब महालक्ष्मी ने स्त्रियों में श्रेष्ठ उस तामसी देवी से कहा-मैं तुम्हें नाम प्रदान करती हूँ और तुम्हारे जो-जो कर्म हैं, उनको भी बतलाती हूँ,॥11॥ महामाया, महाकाली, महामारी, क्षुधा, तृषा, निद्रा, तृष्णा, एकवीरा, कालरात्रि तथा दुरत्यया-॥12॥ ये तुम्हारे नाम हैं, जो कर्मो के द्वारा लोक में चरितार्थ होंगे। इन नामों के द्वारा तुम्हारे कर्मो को जानकर जो उनका पाठ करता है, वह सुख भोगता है॥13॥ राजन्! महाकाली से यों कहकर महालक्ष्मी ने अत्यन्त शुद्ध सत्त्वगुण के द्वारा दूसरा रूप धारण किया, जो चन्द्रमा के समान गौरवर्ण था॥ 14॥ वह श्रेष्ठ नारी अपने हाथों में अक्षमाला, अङ्कुश, वीणा तथा पुस्तक धारण किये हुए थी। महालक्ष्मी ने उसे भी नाम प्रदान किये॥15॥ महाविद्या, महावाणी, भारती, वाक्, सरस्वती, आर्या, ब्राह्मी, कामधेनु, वेदगर्भा और धीश्वरी (बुद्धि की स्वामिनी)- ये तुम्हारे नाम होंगे॥16॥
तदनन्तर महालक्ष्मी ने महाकाली और महासरस्वती से कहा-देवियों! तुम दोनों अपने-अपने गुणों के योग्य स्त्री-पुरुष के जोडे उत्पन्न करो॥17॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से